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५० : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ गुणभद्राचार्य कृत उत्तरपुराण की है। उत्तरपुराण के ६७वें और ६९वें पर्व में ११६७ श्लोकों में आठवें बलदेव और वासुदेव के रूप में राम-लक्ष्मण का वर्णन किया गया है। यह वर्णन 'पद्म पुराण' के वर्णन से भिन्न है। इसमें खास बात यह है कि सीता को जनक की पुत्री न मानकर रावण और मन्दोदरी की पुत्री माना गया है। यह न केवल गुणभद्र का मत था किन्तु तिब्बती रामायण, विष्णु पुराण, महाभागवत पुराण, काश्मीरी रामायण आदि अन्य ग्रन्थों में भी वैसा ही उल्लेख है। अतः सम्भवत: रामकथा का यह दूसरा रूप गुणभद्र के समय में पर्याप्त प्रचार पा चुका होगा और उन्हें अपनी गुरु परम्परा से यही मत प्राप्त हुआ होगा। इसलिए आचार्य परम्परा के अनुसार उन्होंने इसी का उल्लेख किया है।
गुणभद्र के अनुसार उत्तर पुराण में कथानक इस प्रकार है - वाराणसी के राजा दशरथ के चार पुत्र उत्पन्न होते हैं। राम सुबाला के गर्भ से, लक्ष्मण कैकयी के गर्भ से और बाद में जब दशरथ अपनी राजधानी साकेत में स्थापित करते हैं तब भरत और शत्रुघ्न भी किसी रानी के गर्भ से उत्पन्न होते हैं। यहाँ भरत और शत्रुघ्न की माता का नाम नहीं दिया गया है। दशानन विनमि विद्याधर वंश के पुलस्त्य का पुत्र है। किसी दिन वह अमितवेग की पुत्री मणिमति को तपस्या करते देखता है और उस पर आसक्त होकर उसकी साधना में विघ्न डालने का प्रयत्न करता है। मणिमति निदान करती है कि मैं उसकी पुत्री होकर उसे मारूंगी। मृत्यु के बाद वह रावण की रानी मन्दोदरी के गर्भ में आती है। उसके जन्म के बाद ज्योतिषी रावण से कहते हैं कि यह पुत्री आपका नाश करेगी। अत: रावण ने भयभीत होकर मारीच को आज्ञा दी कि वह उसे कहीं छोड़ दे। कन्या को एक सन्दूक में रखकर मारीच उसे मिथिला देश में गाड़ आता है। हल की नोंक से उलझ जाने के कारण वह मंजूषा दिखाई पड़ती है और लोगों के द्वारा जनक के पास पहुँचाई जाती है। जनक मंजूषा को खोलकर कन्या को देखते हैं और उसका सीता नाम रखकर उसे पुत्री की तरह पालते हैं। बहुत समय बाद जनक अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को बुलाते हैं। यज्ञ के समाप्त होने पर राम और सीता का विवाह होता है, इसके बाद राम सात अन्य कुमारियों से विवाह करते हैं और लक्ष्मण पृथ्वी, देवी आदि १६ राजकन्याओं से। दोनों दशरथ की आज्ञा लेकर वाराणसी में रहने लगते हैं। इस कथानक में राम को १४ वर्ष का वनवास नहीं दिया गया है।
नारद से सीता के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर रावण हरने का संकल्प करता है। एक बार राम और सीता वाराणसी के निकट चित्रकूट वाटिका में विहार करते
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