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________________ प्राकृत कथा - साहित्य में सांस्कृतिक चेतना और शिल्प विभिन्न परवर्ती भारतीय कथा - साहित्य के आधारादर्श बने। ज्ञातव्य है कि प्राकृत-कथा के शिल्प - विधान में न केवल बाह्य वैलक्षण्य है, अपितु उसमें प्रतिष्ठित आन्तरिक शिल्प की सौन्दर्य - चेतना और सांस्कृतिक उद्भावना में पाठकों से आत्मीयत्व स्थापित करने की अपूर्व क्षमता भी है। : प्राकृत-कथाओं की असाधारणता ने 'ऑन द लिटरेचर ऑव द श्वेताम्बराज़ ऑव गुजरात' के मनीषी लेखक प्रो० हर्टेल का ध्यान भी आवर्जित किया है। वह प्राकृत-कथाकारों के कथाकौशल की कलात्मक विशिष्टता और औपन्यासिक स्थापत्य पर विस्मय-विमुग्ध हैं। लोकजीवन की विविधता की पूर्ण सत्यता के साथ अभिव्यक्ति में प्राकृत- - कथाकारों की सातिशय विचक्षणता ने उन्हें बरबस आकृष्ट किया है। इसलिए, वह प्राकृत-कथाओं को जनसाधारण की नैतिक शिक्षा का मूलस्रोत ही नहीं, अपितु भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ललित इतिहास भी मानते हैं। यह तथ्य है कि संस्कृति और सभ्यता का यथार्थ और उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्राकृत कथा - साहित्य की उपयोगिता असन्दिग्ध है। उच्च, मध्य और निम्न वर्गों के चारित्रिक विकास और उसके सहज विस्तार को जितनी प्रभावोत्पादक सूक्ष्मता से प्राकृत-कथाकारों ने रूपायित किया है, उतनी तलस्पर्शिता का प्रदर्शन अन्य भाषाओं के कथाकार कदाचित् ही कर पाये हैं । मान्त्रिक वाग्मिता के साथ अपनी स्थापना या प्रतिज्ञा ( ' थीसिस') को, मौलिकता और नवीनता की प्रभावान्विति से आवेष्टित कर, उपस्थापित करना प्राकृत-कथाकारों की रचना - प्रक्रिया की अन्यत्र दुर्लभ सारस्वत और सांस्कृतिक उपलब्धि है। जीवन की जटिलता और भवयात्रा की विभीषिका में मानव के मनोबल को सतत दृढ़तर और उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को निरन्तर उन्निद्र एवं पदक्रम को अविरत गतिशील बनाये रखने के लिए कालद्रष्टा तपोधन ऋषियों तथा दर्शन - ज्ञान - चारित्र - सम्पन्न आचार्यों ने मित्रसम्मित या कान्तासम्मित उपदेशों को कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया, ताकि भवयात्रियों का जीवन-मार्ग दुःख की दारुण अनुभूति से बोझिल न होकर सुगम हो जाय और उन्हें अपनी आत्मा में निहित लोकोत्तर शक्ति को ऊर्ध्वमुख करने की प्रेरणा भी मिलती रहे। इस प्रकार, जीवन और जगत्, दिक् और काल की सार्थकता ही कथा का मूल उद्देश्य है। चाहे पूरी भवयात्रा हो, सामान्य दैनन्दिन जीवन की खण्डयात्रा, दोनों की सुखसाध्यता और ततोऽधिक मंगलमयता या सफलता के लिए कथा अनिवार्य है। 'श्रीमद्भागवत' ( १०. ३१. १ ) के अनुसार, तप्त जीवन के लिए कथा ऐसा अमृत है, जो न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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