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________________ 'दया-मृत्यु' एवं 'संथारा-प्रथा' का वैज्ञानिक आधार : १०७ जब किसी व्यक्ति की मृत्यु असाध्य रोग से अवश्यम्भावी लगती है तथा उसके लिए वेदना रहित एवं सार्थक जीवन की आशाएं क्षीण हो चुकी होती हैं; तो रोगग्रस्त व्यक्ति की सहमति पर अथवा संरक्षक बन्धुओं की प्रार्थना पर चिकित्सक 'दया-मृत्यु' प्रदान करने के अप्रिय विकल्प का चयन करते हैं; जो सम्बन्धित व्यक्तियों के 'संकल्प-शक्ति' (Will-power) से लिया गया निर्णय होता है। तदुपरान्त रोगी की कृत्रिम जीवन-रक्षक दवाएँ तथा शल्य चिकित्सा आदि साधन बन्द कर दिये जाते हैं एवं केवल दर्द निवारक साधन जारी रखें जाते हैं। इस अप्रिय विकल्प के अनुसरण से रोगी आत्महत्या किए बिना चिरिनिद्रा में सो जाता है। जैसे मार्च २००१ में ब्रिटेन की एक ४३ वर्षीय महिला ने अदालत से प्रार्थना किया कि उसे दी जा रही प्राणदायक कृत्रिम सांस बन्द कर दी जाए। अदालत ने महिला को स्वीकृति प्रदान कर दी। किन्तु समाज के लिए जीवन और मृत्यु में भेद करना यक्ष प्रश्न की भाँति होता है। उदाहरणार्थ- अमेरिकी नागरिक 'टेरी शिआवो' मस्तिष्क क्षतिग्रस्त होने के कारण अपने जीवन के विषय में निर्णय करने में असमर्थ था। फलस्वरूप उसके पति की प्रार्थना पर अदालत ने १९९० से निस्पंद पड़ी शिआवो के प्राणरक्षक उपकरण हटाकर उसे चिरनिद्रा में सोने की अनुमति प्रदान कर दी किन्तु शिआवो के माता-पिता ने इसका विरोध किया; क्योंकि उन्हें अभी उसके पुन: स्वस्थ होने की आशा थी। अतः न्यायालय ने अपने निर्णय पर पुनर्विचार किया और माना कि अगर शिआवो की राय ली जा सकती, तो क्या वह अपने मौत के पक्ष में होती? साक्ष्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि रोगी शिआवो अपने मृत्यु के पक्ष में नहीं होती। फलस्वरूप न्यायालय ने निर्णय दिया कि जिन रोगियों की 'प्रत्यक्ष राय' नहीं जानी जा सकती, उनके जीवन रक्षक उपकरण जारी रखें जाएं। तत्पश्चात् न्यायालय के आदेश पर रोगी शिआवो को ६ दिन के पश्चात् जीवन-रक्षक उपकरण लगा दिये गये। जीवन और मृत्यु के मध्य अन्तर करने के निर्णय का एक अन्य संदर्भ यह भी है जो सांस की असाध्य रोग से पीड़ित ९६ वर्षीय माँ, पुत्र तथा डॉक्टर के मध्य ‘दया-मृत्यु' के अप्रिय विकल्प पर विचार करने से है। यदि डॉक्टर रोगी महिला के जीवन को बचाने का उपाय करता है, तो उसे महिला के प्राण-रक्षक उपकरण को जारी रखना होगा। अन्ततः पुत्र माँ की तरफ से निर्णय करता है और डॉक्टर से कहता है कि मैं आपसे माँ के प्राण-रक्षक उपकरण को हटाने के लिए नहीं कहूँगा; लेकिन कृपया माँ की और चिकित्सा न करें; उन्हें शान्ति से अन्तिम सांस लेने दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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