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'श्रमण' के उपर्युक्त अंक के हिन्दी-खण्ड में तीन आलेख- 'मुहम्मद तुगलक और जैन धर्म', राजपूत काल में जैन धर्म' तथा 'जौनपुर की बड़ी मस्जिद क्या जैन मन्दिर है?' परम्परागत जैन लेखों से भिन्न एक नयी जानकारी देने वाले हैं।
'राजपूत काल में जैन धर्म' एक ऐतिहासिक जानकारी है, लेकिन 'जौनपुर की बड़ी मस्जिद क्या जैन मन्दिर है?' चौकाने और जिज्ञासा से भर देने वाले आलेख के लिए श्री अगरचन्द नाहटा जी को बधाई। यह आलेख पढ़कर तो जौनपुर का पूरा परिदृश्य आँखों के सामने घूम जाता है। हम कितने सहनशील हैं और मुस्लिमसमुदाय कितना कट्टर! इतिहास फिर न दुहराये अपनी कहानी .......! इन तीनों आलेखों के एक साथ संयोजन के लिए सम्पादक की पैनी-दृष्टि प्रतिफलित हुई है।
'श्रमण' के सुन्दर प्रकाशन के लिए धन्यवाद! कवर-अंतिम-पृष्ठ के विज्ञापन का कलेवर नहीं बदला, यही एक सौन्दर्य-बोध को बाधा पहुंचाता है। सम्पादन उत्कृष्ट एवं सौम्य है।
डॉ० धूपनाथ प्रसाद, धर्मवीर भारती सृजन-पीठ, वाराणसी
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