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________________ श्रमण पाठकों की नजर में विषय बाहुल्य और आस्वाद वैविध्य से संवलित अंक समादरणीय सम्पादक जी, आपकी सम्पादकीय शोध-मनीषा से मण्डित 'श्रमण' का जनवरी-जून २००५ अंक प्राप्तकर विशिष्ट सारस्वत उपलब्धि का बोध हुआ है। का मुद्रणप्रस्तवन सातिशय कलावरेण्य है। यों तो, इस अंक में प्रकाशित सभी आलेख (हिन्दी, अंग्रेजी के) शोधगर्भ हैं ही, आर्हत् शास्त्र के अधीतियों के लिए अनेक आयामों के उपास्थापक भी हैं। भाषाशास्त्र में अभिसन्धि रखने के कारण मुझे प्राज्ञबन्धु डॉ० कमलेश कुमार की शास्त्रसिक्त रचना 'प्राकृत भाषा और राजशेखर कृत कर्पूरमञ्जरी में देशी शब्द' ने विशेष रूप से आवर्जित किया है। यद्यपि देशी शब्दों का संस्कृतरूप प्रयोदुर्लभ है, तथापि विद्वान लेखक का तद्विषयक शोध-प्रयास नितराम श्लाघ्य है। इसी प्रकार डॉ० काकतकर राव की 'जीवदया' पर केन्द्रित चिन्तन' परम्परेतर नई दिशा का उद्भावक है। श्री रंजनसूरि देव, पटना 'श्रमण' का योगदान अमूल्य जैन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में पार्श्वनाथ विद्यापीठ एवं 'श्रमण' का योगदान अमूल्य है। भविष्य में भी विद्यापीठ अपने कार्य में प्रगतिपथ पर अग्रसर रहेगा, ऐसा विश्वास रखता हूँ। विनय बंशीलाल गुणोत, वार्ड नं० ५, मालीपुरा, रालेगांव-४५४०२, जि. यवतमाल (महाराष्ट्र) श्वेत किरणें कलुषमन को धो रही हैं पुस्तक या पत्रिका का कवर-पृष्ठ उसका मुखड़ा होता है, मुखड़ा देखकर ही औसतन व्यक्तित्व का भान हो जाता है। करीब-करीब दस वर्षों से 'श्रमण' का पाठक हूँ, परन्तु आज तक ‘श्रमण' (जनवरी-जून' २००५) का ऐसा मुख-पृष्ठ कभी नहीं आया था। देखते ही ऐसा एहसास होता है कि किसी अध्यात्मपीठ की सही तस्वीर सामने आ गयी है। श्वेताम्बर से श्वेत किरणें कलुषमन को धो रही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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