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________________ ४२ आदि के गणतंत्रात्मक राज्यों से उसकी शत्रुता थी, जबकि गणतंत्र के राजाओं में पारस्परिक सौमनस्य था। दूसरे, काशी और कोसल के राजाओं का वहां उपस्थित रहना भी सम्भव नहीं था। क्योंकि राजगृह के समीपवर्ती पावा से उनकी दूरी लगभग ३०० किलामीटर थी जबकि फजिलका या उसमानपुर के निकटवर्ती पावा समीप थी और उनके राज्यों की सीमा से लगी हुई थी। २. यदि महावीर का निर्वाण राजगृह की समीपवर्ती पावा के पास होता तो उस समय वहां कणिक अजातशत्रु की उपस्थिति का उल्लेख निश्चित हुआ होता, क्योंकि वह महावीर का भक्त था। किन्तु प्राचीन ग्रन्थों में कहीं भी उसकी उपस्थिति के संकेत नहीं हैं। इसके विपरीत मल्ल, लिच्छवी आदि गणतंत्रों के राजाओं की उपस्थिति के संकेत हैं। ३. महावीर के काल में राजगृह के समीप किसी पावा के होने के संकेत प्राचीन जैन आगमों और बौद्ध त्रिपिटक में नहीं मिलते। जबकि बौद्ध त्रिपिटक में कुशीनगर के समीपवर्ती मल्लों की पावा के अनेक उल्लेख मिलते हैं। त्रिपिटक में मल्लों के कुशीनगर और पावा ऐसे दो गणराज्यों का उल्लेख है, ये मल्लगणराजा महावीर के निर्वाण के समय उपस्थित भी थे। ४. पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर राजगृह की समीपवर्ती वर्तमान में मान्य पावा ही महावीर की निर्वाणस्थली है, यह सिद्ध नहीं होता है। क्योंकि वहाँ जो प्राचीनतम पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध है, वह संवत् १२६० में अभयदेवसूरि द्वारा स्थापित चरण है। इस आधार पर भी वर्तमान पावा की ऐतिहासिकता तेरहवीं शती से पूर्व नहीं जाती है। ५. राजगृह के अति समीप वर्तमान में मान्य पावा में कल्पसूत्र में उल्लिखित हस्तिपाल जैसे किसी स्वतंत्र राजा का राज्य होना सम्भव नहीं है। दो गणराज्यों की राजधानी और राज्य २०-२५ मील की दूरी पर होना सम्भव है, जैसे कुशीनगर के मल्लों की और पावा के मल्लों की राजधानियां मात्र २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित थीं। किन्तु मगध जैसे साम्राज्य की राजधानी के अति समीप मात्र २० - २५ किलोमीटर की दूरी पर हस्तिपाल जैसे स्वतंत्र राजा की राजधानी पावा का होना सम्भव नहीं था। ६. कुछ व्यक्तियों का यह तर्क है कि वर्तमान 'पावा' को ही महावीर का निर्वाणस्थल और लछवाड़ या नालन्दा के समीपवर्ती कुण्डपुर को महावीर का जन्मस्थान मानना उचित है। क्योंकि ये दोनों वर्तमान पावा के इतने निकट हैं कि भगवान के पार्थिव शरीर की दाह क्रिया के समय भगवान के बड़े भाई नन्दिवर्धन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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