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________________ १०८ पुत्र बन्धु, सुबन्धु, कंस आदि हुए। अन्धकवृष्णि के दस पुत्रों में वसुदेव दसवें पुत्र थे। इसी प्रसंग में समुद्रविजय आदि के पूर्वभव की चर्चा की गई है। वसुदेव के पूर्व भव की चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि वह पूर्वभव में नन्दिसेन था । तुलनात्मक विवरण जहां तक कृष्ण के माता-पिता के नाम और जन्म का प्रश्न है, जैन परम्परा और हिन्दू परम्परा में विशेष अन्तर नहीं है। दोनों ही परम्पराएँ कृष्ण को वासुदेव एवं देवकी का पुत्र मानती हैं तथा जन्म के पश्चात् यशोदा के द्वारा उनके लालनपालन की बात भी स्वीकार करती है। दोनों परम्पराओं के अनुसार कृष्ण के अन्य सात भाइयों का उल्लेख हुआ है। किन्तु दोनों परम्पराओं में कृष्ण के अन्य भाइयों के कथानक के सम्बन्ध में अन्तर पाया जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार बलभद्र और श्रीकृष्ण के जन्म के पूर्व देवकी के छः पुत्रों को कंस पछाड़कर मार डाता है। यद्यपि जैन ग्रन्थ वसुदेवहिण्डी में भी कंस के द्वारा देवकी के छः पुत्रों के मार डालने का उल्लेख है किन्तु जिनसेन के उत्तरपुराण तथा हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में तथा अन्तकृत्दशा के अनुसार देवकी के गर्भ से उत्पन्न ये छहो पुत्र हरिणेगमेष नामक देवता के द्वारा सुलसा के यहाँ पहुँचा दिये गये और सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के पास लाकर रख दिया जाता है। इस प्रकार जैन परम्परा मुख्य रूप से कृष्ण के सहोदर इन छः भाइयों को सुलसा के द्वारा पालित मानती है जो आगे चलकर तीर्थंकर नेमि के पास दीक्षित होकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार बलभद्र का देवकी के गर्भ से विष्णु के आदेश एवं योगमाया शक्ति के द्वारा रोहिणी के गर्भ में संहरण है जबकि जैन परम्परा के किसी भी ग्रन्थ में इस संहरण की घटना का उल्लेख नहीं है। बल्कि यह पाया जाता है कि बलभद्र रोहिणी के गर्भ से सहज जन्म लेते हैं। यद्यपि यहां यह स्मरणीय तथ्य अवश्य है कि जैन परम्परा में जो महावीर के गर्भ संहरण की बात कही जाती है वह मूल में कहीं बलदेव के गर्भ संहरण की घटना से प्रभावित तो नहीं है, जिसे जैनों ने अपने अनुरूप मोड़ लिया हो । बलभद्र को कृष्ण का सहोदर भाई न मानने के कारण जैन परम्परा में कृष्ण के सात भाइयों की संख्यापूर्ति के लिए गजसुकुमाल की कथा का विकास हुआ। श्रीकृष्ण के यशोदा के यहाँ स्थानान्तरण की बात दोनों परम्पराएं समान रूप से स्वीकार करती हैं, किन्तु जहाँ श्रीमद्भागवत में यशोदा के गर्भ से जन्मी पुत्री को, जो कि विष्णु की योगमाया का ही स्वरूप थी, कंस पटक कर मार डालने का प्रयत्न करता है, किन्तु योगमाया होने के कारण वह मृत नहीं होती है तथा आकाश में चली जाती है और काली, दुर्गा आदि की शक्ति के रूप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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