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________________ प्राकृत एवं अपभ्रंश जैन साहित्य में कृष्ण राम और कृष्ण ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो युगों-युगों से भारतीय जनमानस के श्रद्धा के केन्द्र रहे हैं। इन दानों व्यक्तित्वों के जीवन चरित्रों ने भारतीय धर्म, सभ्यता और संस्कृति को बहुत अधिक आन्दोलित और प्रभावित किया है। वैष्णवधर्म के उद्भव एवं भक्तिमार्ग के विकास के साथ ये दोनों व्यक्तित्व अधिकाधिक जनश्रद्धा के केन्द्र बनते चले गए। इनके जीवन वृत्तों पर रचित रामायण, महाभारत और भागवत भारतीय परम्परा के ऐसे ग्रन्थ हैं, जो सभी भारतीय लोक भाषाओं में अनुदित हैं और भारतीय जनसाधारण के द्वारा अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़े व सुने जाते हैं। साहित्यिक रुझान की दृष्टि से राम के चरित्र की अपेक्षा भी कृष्ण का चरित्र पूर्व मध्य काल में अधिक प्रभावी रहा है। राम के चरित्र को अधिकाधिक लोकव्यापी बनाने का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस को है। राम सदाचार सम्पन्न, सन्मार्ग संरक्षक एक वीर पुरुष हैं, जबकि कृष्ण एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। वे एक नटखट बालक, रसिक युवा, धर्म और समाज के संरक्षक वीर पुरुष, कुशल राजनेता तथा धर्म एवं अध्यात्म के उपदेष्टा प्रज्ञा पुरुष सभी कुछ हैं। उनके जीवन के इस बहुआयामी स्वरूप ने उन्हें अधिक प्रभावी बना दिया है। अर्धमागधी आगम साहित्य में कृष्ण जहां तक जैन- परम्परा का प्रश्न है, उसने राम और कृष्ण दोनों के कथानकों को अपने में आत्मसात करने का प्रयत्न किया है। यद्यपि जैन परम्परा में विमलसूरि के पउमचरियं (प्राकृत), जिनसेन के पद्मपुराण (संस्कृत), रविषेण के पद्मचरित (संस्कृत) एवं स्वयम्भू के पउमचरिउ (अपभ्रंश) के साथ-साथ राजस्थानी और हिन्दी में अनेक ग्रन्थ रामकथा पर मिलते हैं, किन्तु जैन आगम साहित्य में जितना विस्तृत विवरण कृष्णकथा का मिलता है उतना रामकथा का नहीं मिलता। जैन आगमों में राम के नाम निर्देश के अतिरिक्त उनके जीवनवृत्त का कोई उल्लेख नहीं मिलता। जबकि कृष्ण के जीवनवृत्त के अनेक उल्लेख उनमें उपलब्ध हैं। जैन परम्परा में कृष्ण का जीवन चरित्र २२ वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के जीवनचरित्र के साथ जुड़ा होने के कारण है, उसे राम की अपेक्षा भी आगम साहित्य में अधिक स्थान मिला है। आगम ग्रन्थों में समवायांग, उत्तराध्ययन, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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