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आनन्दजी कल्याणजी पेढी के संस्थापक युगपुरुष श्रीमद् देवचन्द्र जी... : ९१ अनाग्रहशीलता आपके प्राणों के आधार थे। प्राप्त कृतियों से ज्ञात होता है कि आपश्री के पास विद्याध्ययन हेतु श्रमण परम्परा के सभी आम्नायों के मुनिजन आया करते थे। तपागच्छ में दीक्षित प्रसिद्ध साहित्यकार पं० मुनि जिनविजय, मुनि उत्तमविजय, मुनि विवेकविजय जी ने अपनी रचनाओं में देवचन्द्र जी द्वारा प्रदत्त विद्यादान के प्रति श्रद्धा पूर्वक आभार ज्ञापन किया है। (जिन विजय जी द्वारा कृतज्ञता ज्ञात करने वाला पद महाभाष्य अमृत लह्यो देवचन्द्र गणि पास)
___आपश्री परम शास्त्रज्ञ होने के साथ-साथ आदर्श तर्कवादी थे। आप संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी, सिंधी आदि अनेकानेक भाषाओं के आयामों से सम्पृक्त थे। प्रसिद्ध पाश्चात्य विचारक बेकन ने लिखा है कि -"रीडिंग मेक्स ए फुल मैन, स्पीकिंग ए परफैक्ट मैन, राइटिंग ऐन एग्जेक्ट मैन" अर्थात् - अध्ययन मनुष्य को पूर्ण बनाता है, भाषण उसे परिपूर्णता देता है और लेखन उसे प्रमाणिक बनाता है। अतः आपश्री भी विद्वर्य व्याख्याता, लेखक, प्रवक्ता, दार्शनिक तत्त्व-चिंतक, महिमामंडित शीर्ष पुरुष थे। शब्द शैली की उच्चता और विश्लेषण की तलस्पर्शता उनके ज्ञान, व्यक्तित्व की अप्रतिम विशेषता रही है। अंतरंग कूप से प्रस्फुटित, आध्यात्मिक रस से आप्लावित उनके मधुर गीत समग्र अध्यात्म जगत् में उज्ज्वल मोतियों की तरह विकीर्ण हैं।
वि०सं० १७७७ में पाटण में शाहीपोल के चौमुखवाड़ी पार्श्वनाथ जिनालय में सत्तरभेदी पूजा के अन्तर्गत श्रीमाल ज्ञातीय नगरसेठ तेजसी डोसी ने आचार्य ज्ञानविमल सूरि से सहस्त्रकूट के हजार नाम पूछे - आचार्य श्री ने कहा - सहस्त्रकूट के जिन नाम लुप्त हो गए। आचार्य श्री के समीप आसीन उपाध्याय देवचन्द्र जी ने तत्क्षण कहा कि -सूरि पद में रहते हुए सत्य महाव्रत का खण्डन न करें। देवचन्द्र जी के मुखाग्र से व अभिमान को चुनौती देने वाले संवाद को सुनकर आचार्य ज्ञानविमल सूरि बोले- “तुम मरुस्थलीय लोग शास्त्रीय रहस्यों को क्या जानो?" तुमने मेरे कथन को मृषा भाषण कहा - यदि तुम्हें सहस्त्रकूट के नाम मालूम हों तो बताओ। देवचन्द्र जी ने अपने शिष्य को आदेश देते हुए कहा कि ज्ञान भंडार में से सहस्त्रकूट जिन नाम ग्रंथ की पाण्डुलिपि ले आओ। गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर शिष्य पाण्डुलिपि लेकर आया। देवचन्द्र जी ने जब नामावलि पढ़कर सुनाई तब ज्ञानविमल सूरि व तत्त्वज्ञ तेजसी डोसी विस्मित हुए और बहुत प्रभावित हुए। विश्रुत विद्वता के कारण संघ एवं गुरुजनों ने अन्तस् उर्मियों से गणि, उपाध्याय, विद्या-विशारद, जैनसिद्धान्त-शिरोमणि, गीतार्थ, वाचक, विद्या दानेश्वर आदि गरिमामय संबोधन से ज्ञान रश्मियों व पद की महिमा का सम्मान किया फिर भी आप श्री पद-प्रतिष्ठा, यशकीर्ति, मान-सम्मान के विष से अप्रभावित रहे।
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