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________________ २ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ के दिनों में मांसाहार निषिद्ध है। स्पष्ट है कि हिन्दू सदाचार नियमों में मांसाहार तत्त्वतः निषिद्ध है क्योंकि जीव दया ही धर्म का आधार है, ऐसी मान्यता स्वीकृत है। भारत में कुछ अन्य धर्म भी हैं जिनका आधार हिन्दू दार्शनिक सिद्धान्तों से भिन्न है। ग्रीक चिंतक एरिस्टाटल के विचारों को प्राचीन यूरोप एवं पश्चिम एशिया में बड़ी मान्यता प्राप्त थी। उसके अनुसार चैतन्य (जीव तत्त्व) के तीन प्रकार हैं- संवर्धी चैतन्य, संवेदी चैतन्य तथा विवेकी चैतन्या संवर्धी चैतन्य जो पोषण, वृद्धि तथा प्रजनन का नियामक है, सभी जीवों में विद्यमान है। संवेदी चैतन्य चलन क्रिया का नियमन करता है तथा सभी प्राणियों एवं मनुष्यों में पाया जाता है। विवेकी चैतन्य केवल मनुष्यों में पाया जाता है अर्थात् बुद्धिपूर्वक क्रिया करने की क्षमता केवल मनुष्यों में होती है। यह विचारधारा ईसाई दर्शन में ग्राह्य मानी गयी। ईसाइयों के प्रमाण ग्रंथ बाइबल के अनुसार परमेश्वर ने मानव जाति के भोगोपभोग के लिए ही सभी जीव-जन्तुओं की सृष्टि की। केवल मनुष्यों में विवेकी चैतन्य अर्थात् आत्मा अमर है जो परमेश्वर का ही अंश है, इस सिद्धान्त के एक उपसिद्धान्त के अनुसार अन्य जीवों में आत्मा नहीं है। अत: उन्हें सुख-दुःख का अनुभव नहीं होता इस तर्क के अनुसार मांसाहार में कोई दोष नहीं है। इस्लाम में भी यही विचारधारा मान्य हो गयी। यूरोप में ज्ञान के नवोदय के साथ सभी दार्शनिक विषयों पर नये सिरे से विचार करने की प्रवृत्ति पैदा हुई। धीरे-धीरे धार्मिक ग्रथों के विरुद्ध मत भी प्रस्तुत किये जाने लगे। जानवरों को दर्द का अनुभव होता है यह प्रमाणित करने के लिए किसी प्रमाणग्रंथ के आधार की या किसी जटिल वैज्ञानिक प्रयोग की आवश्यता नहीं है। केवल निरीक्षण से ही स्पष्ट हो जाता है। पश्चिम देशों में भी गाय के सामने उसके बछड़े की हत्या करना निषिद्ध माना जाता है। कई सामिषाहारी अपने सामने भेड़-बकरी का गला काटना देख नहीं सकते। इस प्रकार जनमानस में जीवदया की ओर झुकाव होना स्वाभाविक है। जीवदया ही मानव का नैसर्गिक गण है। यूरोपीय देशों में भी इस गण की अभिव्यक्ति होने लगी। इटली के रोम नगर में १९वीं सदी में जानवरों पर होनेवाली हिंसा का विरोध करनेवालों का एक स्वयंसेवी संगठन बना। यद्यपि कैथोलिक सम्प्रदाय के जगद्गुरु पोप ने इस पर आपत्ति जतायी तथापि इस तरह की संस्थाओं की संख्या बढ़ती गयी। धीरे-धीरे जीवदया को उन्नत संस्कृति का लक्षण मानना समाज में स्वीकृति हो गया। इस परिवर्तन में अंग्रेज सबसे पुरोगामी थे। सन १८२२ में पालतू गाय तथा घोड़ों पर होनेवाली हिंसा पर प्रतिबन्ध लगाने वाला कानून ब्रिटिश संसद में पारित हुआ। कुछ समय के बाद सन १८२४ में सभी पालतू जानवरों पर होनेवाली हिंसा को रोकने के लिए एक निजी संस्था स्थापित की गयी जिसे सन् १८४० में शासन की मान्यता मिली। इस आदर्श का अनुसरण मानते हए अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वयंसेवी संस्थाएं स्थापित की गयी तथा कानून पारित किये गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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