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६० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ मेरा उल्लू रूप दूर हो सकता था इसलिए मैने तिलक-सुन्दरी को डरा कर आपको युद्ध के लिए ललकारा था। आपकी कृपा का मैं आभारी हूं कि आपने मुझे मेरा असली स्वरूप प्रदान किया है।
यह पवनगति विद्याधर रत्नचूड को पद्मश्री राजकुमारी के साथ विवाह करने के लिए वैताढ्य पर्वत की ओर ले जाता है।
३. धूमकेतु-यक्ष - रत्नचूड कुमार जब रिष्टपुर में पहुंच कर उस निर्जन नगर को देखता है तो उसे वहां वानरी के रूप में सुरानन्दा राजकुमारी मिलती है। रत्नचूड जब वहां पर लेटा हुआ था तभी उसने नगर को जलता हुआ देखा। तभी वहां उपद्रव करता हआ एक राक्षस प्रगट हआ। उसने कमार को बहुत डराया। तब रत्नचड ने उसके वक्ष-स्थल पर चरणप्रहार किया। रत्नचूड के पूछने पर अपने परिचय में उसने कहा कि मैं धूमकेतु यक्ष हूं और मैंने पूर्वजन्म के कारण इस नगर को उजाड़ा है। रत्नचूड के आग्रह करने पर उस धूमकेतु यक्ष ने अपना पूर्व-जन्म सुनाया।
४. निर्धन सोमप्रभ ब्राह्मण - वर्धमान नामक नगर में धनेश्वर श्रेष्ठी पुत्र और सोमप्रभ नाम का एक ब्राह्मण रहता था। दोनो क्रमश: कामरति और कामपताका नामक वेश्याओं में अनुरक्त थे। कामदेव की हिन्दोला क्रीड़ा के समय नागरिक-जनों से धन के कारण अपमानित होकर सोमप्रभ ब्राह्मण धन प्राप्ति के लिए निकल पड़ा। पहले उसने बिल्व-वृक्ष की जटाओं के ज्ञान के आधार पर धन का घड़ा प्राप्त किया। किन्तु अटवी में चोरों ने उसको लूट लिया तथा एक अन्धे कुएं में फेंक दिया। एक सार्थवाह के द्वारा उसे निकाला गया। तब एक हेमकूट नामक धातुवादी की सहायता से सोमप्रभ ब्राह्मण ने कुछ सोना प्राप्त किया। किन्तु उसके सो जाने पर हेमकूट धातुवादी उस सोने को हरण कर ले गया। तब एक योगेश्वर नामक संन्यासी की सहायता से सोमप्रभ ने मंत्र जाप के द्वारा धन प्राप्त करने का प्रयत्न किया। किन्तु मंत्र-जाप के द्वारा वह छला गया।।
दूसरे दिन सोमप्रभ ने लोहनंदी नामक संन्यासी को अपनी निर्धनता की व्यथा कही। वह संन्यासी सोमप्रभ को स्वर्ण बनाने के लिए रस लेने हेतु एक कुएं के पास ले गया और तुम्बी के साथ सोमप्रभ को रस्सी के सहारे उस कुएं में उतार दिया। रस लेकर जब सोमप्रभ बाहर आया तो दोनों ने मिलकर उस रस से स्वर्ण बनाया। किन्तु उस लोहनंदी संन्यासी के द्वारा उसे कपट से नगर भेज दिया गया और वह स्वर्ण तथा रस लेकर भाग गया। तब निराश होकर सोमप्रभ स्वर्ण-भूमि को गया और वहां उसने स्वर्ण की ईटें प्राप्त की। किन्तु रास्ते में जहाज भग्न हो जाने के कारण वह धन भी उसके हाथ से निकल गया। समुद्र में बहता हुआ वह सोमप्रभ किसी प्रकार
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