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रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन : ५९
अन्त तक बना रहता है। इन कथाओं के माध्यम से ग्रन्थकार को अपनी काव्य-प्रतिभा तथा सांस्कृतिक ज्ञान-विज्ञान को प्रस्तुत करने का अवसर मिल जाता है। वस्तुत: ग्रन्थकार ने समकालीन अथवा प्राचीन जिन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के अध्ययन से विभिन्न कथाओं को जाना समझा है तथा लोक-परम्परा से जो कथाएं उसके मानस में उभरी हैं उन कथाओं को वह अपने ग्रन्थ की मूल कथा के साथ किसी न किसी प्रकार संजोने का प्रयत्न करता है। यह लेखक की कुशलता और पांडित्य पर निर्भर करता है कि उसने किस प्रकार मूल कथा और अवान्तर-कथाओं को संजोया है। प्राचीन साहित्य की इसी परम्परा के अनुसार आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने भी रयणचूड में कई अवान्तरकथाएं प्रस्तुत की हैं जिनका संक्षेप सार यहां प्रस्तुत है -
(क) अवान्तर-कथाएं
१.क्षेमंकर सोनी- विजयखेड़ा नामक नगर में क्षेमंकर और सोनी धनावह नामक सेठ - ये दो मित्र रहते थे। धनावह की अत्यन्त लावण्यवती सुरवंकरा नाम की पत्नी थी। वह आभूषण बनवाने के लिए क्षेमंकर सोनी के पास आती थी। इस मेल मिलाप से दोनो में प्रेम हो गया। क्षेमंकर सोनी सुरवंकरा को भगा कर सहकार नामक सन्निवेश को चला गया और वहां अपनी जीविका चलाने लगा। एक बार चोरों के द्वारा उसका धन चुरा लिया गया तब उसने सुरवंकरा से आभूषण मांगा। अंधकार में आभूषण निकालती हुई सुरवंकरा को सांप ने डस लिया। बहुत इलाज कराने पर भी वह मृत्यु को प्राप्त हो गयी। क्षेमंकर उसके वियोग में, गले में फंदा लगाकर जंगल में मरने लगा। तभी सोमभूति नामक तापस कुलपति ने उसे छुड़ाया और उसे तापस दीक्षा दी। तपस्वी क्षेमंकर ने विद्याधर से तिलक-सुदनरी को छुड़ाया और उसकी रक्षा करते हुए उसे रत्नचूड को अर्पित किया तथा अन्त में मृत्यु को प्राप्त कर वह क्षेमकर तापस ज्वलनप्रभ देव हुए।
२. उल्लू के रूप में पवनगति - रत्नचूड और तिलक सुन्दरी जब कुलपति के आश्रम में सो रहे थे तब एक उल्लू ने आकर तिलक-सुन्दरी को डराया और रत्नचूड को युद्ध करने के लिए ललकारा। रत्नचूड के द्वारा पकड़े जाने पर और उसको गोद में लेने में पर वह उल्लू एक विद्याधर कुमार हो गया। तब उसने कथा कुमार को सुनायी।
जयरक्ष राजा की धाय माता वेगवती का पुत्र, मै पवनगति हूं। राजा के द्वारा पद्मश्री के वर को खोजने के लिए मैं निकला हूं। जब मैं एक वट-वृक्ष के ऊपर से जा रहा था तभी वहां पर स्थित सुरतेज नामक राजर्षि ने मेरी धृष्टता के कारण मुझे उल्लू बना दिया। तभी से मैं आपके आगमन की प्रतीक्षा में था। आपके स्पर्श से ही Jain Education International For Private & Personal Use Only
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