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गाहा :
लहु कुणसु किंचुवायं जाव न नीसरइ जीवियं तीए ।
गय-जीवियाए पच्छा किं काही लावय-रसेण? ।।१९४।। छाया :
लघु कुरुष्व किंचिदुपायं यावन निःसरति जीवितं तस्याः।
गतजीवितायाः पश्चात किं करिष्यसि लावक-रसेन ? ||१९४।। अर्थ :- तमे जल्दी थी कांइक उपाय को जेथी तेणीना प्राण निकळी न जाय। केमके जीव नीकळी गया पछी लावक रसवड़े शंकराशे ? हिन्दी अनुवाद :- आप शीघ्रता से कुछ उपाय कीजिए, ताकि उसके प्राण निकल न जायें, क्योकि प्राण चले जाने पर लावक रस का क्या होग? गाहा :
तव्वयणं सोऊणं तइया अह राय- उत्त ! में भणिय ।
एयंपि न जाणामो का एसा कणगमालत्ति ।।१९५।। छाया
तद्वचनं श्रुत्वा तदा अथ राज-पुत्र! मया भणितम् ।
एतदपि न जानीमः का एषा कनकमालेति ।।१९५।। अर्थ :- त्यारे ते वचन सांभळीने मारावड़े कहेवायु, “हे राजपुत्र! आ कनकमाला कोण छे ए पण अमे जाणता नथी ! हिन्दी अनुवाद :- तब उसके ऐसे वचन सुनकर मैंने कहा - हे राजपुत्र! वह कनकमाला कौन है, यह भी हम नहीं जानते । गाहा:
ता पुच्छा भाणुवेगं पत्थुय-वत्थुम्मि गहिय-परमत्थं ।
अम्हे पुण पाहुणया अयाणुया एत्थ वत्थुम्मि ।।१९६।। छाया :
तस्मात् पृच्छ भानुवेगं प्रस्तुत-वस्तुनि गृहीत-परमार्थम् ।
आवां पुनः प्राघूर्णका अज्ञातौ अत्र वस्तुनि ।।१९६।। अर्थ :- तेथी प्रस्तुत वातमां ग्रहणकरेला परमार्थवाळा भानुवेगने पूछो। केमके अमे तो अहीं महेमान छीए अने आ वस्तुमा अज्ञात छीए! हिन्दी अनुवाद :- अत: इस बात में ग्रहण किए परमार्थवाले भानुवेग को पूछो - क्योंकि हम तो यहाँ के मेहमान हैं और इस विषय में अन्जान भी । गाहा :
अह भणइ भाणुवेगो अम्हेवि हु नेव जाणिमो किंचि । तो भणइ सोमलया सासूयं एरिसं वयणं ।।१९७।।
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