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अर्थ :- व्यारपछी हुं मकानना ऊपरना माळामां मारी शय्यामां सूइ गयो । भानुवेग पण मारी पासे बेठो हतो।
हिन्दी अनुवाद :- बाद में मैं महल के सबसे ऊपरी मंजिल पर जाकर अपनी शय्या पर सो गया, और भानुवेग मेरे पास में बैठा था।
गाहा :- चित्रवेगनो हृदय संताप
तो भाइ भाणुवेगो कीस तुमं दुम्मणोव्व मुंचसि विसाय- गब्भे सुदीहरे कीस
छाया :
तत्र भणति भनुवेगः कथं त्वं दुर्मन इव मुञ्चसि विषाद-गर्भे सुदीर्घान् कथं
संजातः ? | निःश्वासान् ||१४७ ।।
अर्थ त्यां भानुवेग कहे छे - “तुं दुर्मनस्क जेवो केम थयो छे? अने शामाटे विशाद- युक्त अनिलांबा नीसासा नांखे छे?
हिन्दी अनुवाद :- तब भानुवेग ने कहा- “ तूं उदास क्यों हो गया है ? किस कारण सेतूं विशादयुक्त अतिदीर्घ नि:श्वास छोड़ रहा है।
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गाहा :
संजाओ ? | नीसासे ? ।। १४७ ।।
किं कुणसि अंग-भंगं दीहं नीससिय मुक्क - हुंकारो । भट्ट - द्विय- चणगो विव सयणीए कीस तडफडसि ? ।। १४८ ।।
छाया :
किं करोषि अङ्गभङ्ग दीर्घं निःश्वस्य मुक्त - हङ्कारः । भ्राष्ट-स्थित चणकेव शयनीये कथं तडफडसि ?... .?।।१४८।। ( इतस्ततो भ्रमति)
अर्थ :- तुं अंगने शा माटे मरडे छे? दीर्घनिः सासा छोडीने हुंकार केम करे छे? अने शा माटे भट्टिमां रहेला चणानी जेम शय्यामां तरफठियां मारे छे?
हिन्दी अनुवाद :- अंगों को क्यों मरोड़ रहे हो । ? तथा दीर्घ निःश्वास द्वारा हुंकार क्यों भर रहे हो ? और किस लिए भाड़ के चने की तरह शय्या पर इधर-उधर लेट रहे हो ?
गाहा :
किं किंपि चिंतिऊणं अणिमित्तं चेव कीस तं हससि ? ।
नियय - विगप्प- वसेणं कीस पुणो दुम्मणो होसि ? ।। १४९।।
छाया :
किं किमपि चिन्तयितु-मनिमित्तं चैव कथं त्वं हससि ? | निजक - विकल्प - वशेन
कथं
पुनः
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दुर्मनोभवति ? ।।१४९ ।।
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