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________________ गाहा : न हु सुयणु ! पढम-पुच्छ एरिस-पुच्छाहिं छाइउं तरसि। किडएहिं पयत्तेणवि छाइज्जइ कह णु पच्चूसो ?।।१३४।। छाया: नखलु सुतनु! प्रथम-पृच्छा इदृश-पृच्छाभिःछादयितुंतरसि | कटैः प्रयत्नेनाऽपि छाद्यते कथं नु प्रत्यूषः ? ||१३४।। अर्थ :- हे सुतनु ! आवाप्रकारना प्रश्नो वड़े तुं प्रथम पूछायेलु ढांकवामाटे समर्थ नहीं बने ! गमे तेटला प्रयत्नोवड़े पण शुं चटाई द्वारा सूर्य ढांकी शकाय? हिन्दी अनुवाद :- हे सुतनु! इस प्रकार के प्रश्नों से तूं सच्चाई मुझसे छुपा नहीं सकेगा, कितने भी प्रयत्न करो क्या कभी चटाई से सूर्य ढका जा सकता है? गाहा : एवं च तेण भणिओ लज्जाए अहोमुहो ठिओ अहयं । तं दद्रु भाणुवेगो ठिओ अलक्खोव्व होऊणं ।। १३५।। छाया : एवं च तेन भणितः लज्जया अधोमुखः स्थितोऽहकम् । तं दृष्ट्वा भानुवेगः स्थितो अलक्ष्येव भूत्वा ।।१३५।। अर्थ :- आ प्रमाणे भानुवेगवड़े कहेवायेलो लज्जाथी अधोमुख हुं रहयो। आ जोईने भानुवेग पण विलखों जेवों थई गयो । हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार भानुवेग से कहा गया मैं लज्जा से अधोमुख हो गया यह देख कर भानुवेग भी अलक्ष्य जैसा हो गया। गाहा : लज्जाए तस्समए वालिज्जतीवि अन्नओहुत्तं । मड्डाए तहवि निवडइ मह दिट्ठी तीए मुह-कमले । १३६।। छाया : लज्जाया तत्समये वार्यमाणाऽपि अन्यतो भुक्तं। बलात्कारेण तथाऽपि निपतति मम दृष्टिस्तस्या मुख-कमले।।१३६।। अर्थ :- ते समये शरमथी दृष्टिने अटकाववा छतां पण बीजे नहि जता बलात्कार वड़े पण मारी दृष्टि तेणीना मुख कमल पर जती हुती । हिन्दी अनुवाद : - उस समय लज्जा से दृष्टि को रोकने पर भी बारबार दृष्टि और कहीं न जाकर उस कमलमुखी कनकमाला की ओर ही चली जाती थी। 97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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