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________________ छाया : एवं विकल्पमान अनिमेष - नयनाभ्यां तां पश्यन् । तयाऽपि प्रलोकितोऽहं सस्निग्धापांग- दृष्टया ।।१२४।। अर्थ :- ए प्रमाणे विकल्प करतो अनिमेष नयनवड़े तेणीने जोनो हतो तेलीवारमां तेणीवड़े स्नेहभिनी तिच्र्च्छा दृष्टिवड़े हुं पण जोवायो । हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार विकल्प करता हुआ अनिमेष नयनों से उसे देख रहा था, इतनी ही देर में युवती ने भी मुझे स्नेहिल तिरछी दृष्टि से देखा । गाहा : पुट्ठो य भाणुवेगो का एसा कस्स वावि महिलत्ति ? | ईसीसि विहसिऊणं अह भणियं छाया : महिलेति ? | पृष्टश्च भानुवेगः का एषा कस्य वा अपि ईषदीषत् विहस्य अथ भणितं भानुवेगेन || १२५ | | अर्थ :- अने में भानुवेगने पूछ्यु आ कोण छे ? अथवा शुं कोईनी पण स्त्री छे? आ प्रमाणे पूछवाथी कांइक स्मित करीने भानुवेगे कहयु ! हिन्दी अनुवाद :- मैंने भानुवेग से पूछा - "यह कौन है ? क्या यह किसी की पत्नी है ? इस प्रकार पूछने पर कुछ मुस्कुराकर भानुवेग ने कहा । गाहा : एईए संकहाए न हु कज्जं किंचि उट्टिमो ताव | एसा हु वंक- वंकं जोयइ तुह संमुहं जेण । । १२६ ।। छाया : अस्याः संकथायाः न हि कार्यं किञ्चितुतिष्ठामः तावत् । एषा हि वक्र-वक्रं पश्यति तव सम्मुखं येन || १२६ ।। अर्थ :- आ कन्यानी कथामां कोई ज फायदो नथी। हवे आपणे अंहीथी उठिए केम के आ कन्या तिरछी नजरे तारी सामे जोया करे छे। भाणुवेगेणं ।। १२५ ।। हिन्दी अनुवाद :- "इस कन्या की कहानी कहने से कोई फायदा नहीं है। अब हम यहाँ से उठेंगे क्यों कि यह कन्या कटाक्ष से तुझे देखती रहती है । गाहा : अंगेसु निवडमाणा दिट्ठी एवंविहाण महिलाण । देहं कुणइ असत्थं अवस्स हिययं अवहरेज्जा ।। १२७ ।। छाया : अङ्गेषु निपतमाना दृष्टिः एवं विधानां महिलानाम् । देहं करोति अस्वस्थं अवश्यं हृदय-मपहरेत् ।। १२७ ।। Jain Education International 94 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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