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________________ १६ 4. ५. 6. ८. श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६ / जनवरी - जून २००५ Robert Garner (ed), Animal Rights: The Changing Debate, Macmillion 1996, Hampshire, U.K. ब्रिटिश संसद द्वारा सन् १८२२ में पारित कानून रिचर्ड मार्टिन ने प्रस्तुत किया था । इस लिए यह कानून मार्टिन ऐक्ट नाम से प्रसिद्ध है। : ७. (i) “प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा" । उमास्वामी रचित तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय ७, सूत्र १३ | आचार्य पूज्यपादविरचित सर्वार्थसिद्धि, टीका सहित (११वां संस्करण सन् २००२)। सम्पादन - अनुवाद सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली। १०. Society for Prevention of Cruelty to Animals (SPCA) नाम की सन् १८२४ में स्थापित संस्था शासकीय मान्यता मिलने के बाद सन् १८४० में Royal Society for Prevetntion of Cruelty to Animals बनी। भारत में भी इस संस्था की शाखाएं स्थापित की गयीं, यद्यपि स्वतंत्रता के बाद उसके नाम से Royal शब्द हटाया गया। यह संस्था आज भी भारत में सक्रिय है। इस संस्था द्वारा चलाये गये पशुचिकित्सालय कई शहरों में हैं। (ii) श्वास लेने में भी कुछ सूक्ष्म जन्तु मरते होंगे। फिर भी सूक्ष्म जन्तु मारने हेतु कोई श्वास नहीं लेता। इस प्रकार द्वेषभाव रहित यदृच्छया होने वाली हिंसा पापकृत्य नहीं है। सदयप्राणविमोचन (अशमनीय तथा असहनीय वेदना से छुटकारा दिलाने के लिए प्राण विमोचन ) एक ज्वलन्त समस्या है। इस विषय में विपुल मात्रा में साहित्य उपलब्ध है। फिर भी यह सब ईसाइयों की विचारधारा पर आधारित है। भारत में इस पर जो चर्चा हो रही है वह भी पश्चिमी विचारों की प्रतिध्वनि है। अपने धार्मिक तथा सदाचारनियमों से सुसंगत विचारधारा जनमानस में विकसित करने के लिए स्वतन्त्र विचार की आवश्यकता है। जानवरों के 'क्लोन' (सर्वसम लक्षणों के दो या अधिक जीव) बनाने की विधि ब्रिटेन में विकसित की गयी है। मानव क्लोन का निर्माण भी इसी विधि द्वारा साध्य है; फिर भी ईसाइयों के विरोध के कारण ऐसा प्रयत्न अब तक नहीं हुआ। इस विधि द्वारा कई रोगों के इलाज के लिए ऊतक बनाये जा सकते हैं। अतः कई वैज्ञानिक इस तरह के प्रयोगों का समर्थन करते हैं। यद्यपि यह गम्भीर चर्चा का विषय है परन्तु भारत में इसपर वस्तुनिष्ठता से विचार नहीं हो रहा है। इसके सामाजिक, नैतिक तथा धार्मिक पहलुओं पर विचार होना आवश्यक है। हम अपने पूर्वजों के प्रति धन्यवाद प्रदर्शित करते हैं क्योंकि उनकी मेहनत का फल हमें अब मिल रहा है। उनकी दूरदर्शिता के कारण ही हम सुखी हैं। हमारे पूर्वज तो अब नहीं हैं फिर उनके उपकार का ऋण कैसे लौटाएं? इसका नीतिसम्मत तरीका एक ही है - आगामी पीढ़ियों के कल्याण का ख्याल रखना । धरती पर जीवन की निरंतरता बनाये रखने का यह एकमात्र तरीका है। इस सार्वत्रिक एवं सार्वकालिक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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