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१४ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ न्यूनता है। इसे संशोधन द्वारा दूर करना होगा। स्वतन्त्र (वन्य) प्राणियों के संरक्षण हेतु सन् १९७२ में एक कानून बनाया गया जो सन् १९९३ तक चार बार संशोधित किया गया है।२० प्रचलित कानूनों में कई न्यूनताएं हैं जिन्हें दो वर्गों में रखा जा सकता है- व्यावहारिक कठिनाइयां तथा सैद्धांतिक विसंगतियां।
१.व्यावहारिक कठिनाइयां- क्योंकि पीड़ित पक्ष मूक प्राणी हैं अत: उनकी शिकायत पूरी तरह से सुनी नहीं जा सकती। कानून की शब्दावली जटिल तथा अस्पष्ट होती है। जगह-जगह पर 'यथासम्भव', 'सकारण हिंसा' आदि प्रावधान होते हैं। पीड़क या उसका वकील वाक्चातुर्य से इसका फायदा उठा सकता है क्योंकि पीड़ित पक्ष उसका प्रत्युत्तर देने में असमर्थ होता है। यदि अपराध सिद्ध हो जाता है तभी दंड के रूप में केवल छोटी-सी रकम देनी पड़ती है। कानून के सही कार्यान्वयन में इस प्रकार की कई कठिनाइयां हैं।
२.सैद्धान्तिक विसंगतियों के कारण कानून की गौरवमय प्रतिमा ही नष्ट हो जाती है। यदि कोई किसी जीव को इतनी पीड़ा दे कि उसे अब पशुवैद्यकीय सहायता द्वारा बचाना सम्भव न हो तो गुनाह साबित होने पर पीड़ा देनेवाले को दंडित किया जाता है। साथ ही साथ कानूनी प्रावधान के अनुसार पीड़ित जीव को 'वेदनारहित तरीके से' तुरन्त 'छुटकारा दिलाना चाहिए, अर्थात् उसे मार देना चाहिए। इस प्रकार जानवर को दुबारा यातना मिलती है- पहले उसे पीड़ा पहुंचती है जो अन्याय माना जाता है और दूसरी बार उसका प्राणहरण किया जाता है जो न्यायसम्मत है! जीवदया हेतु बने कानून में इस क्रूर विडम्बना की अनदेखी की गयी है।
(ग) आदर्श की ओर
वास्तव में कानूनी प्रावधानों द्वारा जीव-हिंसा को पूरी तरह नहीं रोका जा सकता। इसमें सब लोगों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है। वनक्षेत्र का विस्तार घटने तथा वर्षा की अनियमितता के कारण वन्य पशुओं के सामने नयी कठिनाइयां आयी हैं। पशुसंवर्धन के नये तकनीक अपनाने के कारण आश्रित जानवरों की कठिनाइयां भी बढ़ी हैं। मानव के अधीन पूर्णतया आश्रित होने के कारण उन्हें असह्य जीवन मरने तक (अर्थात् मारे जाने तक) बिताना पड़ता है। मूक पशुओं की इन सब कठिनाइयों को प्रयत्नपूर्वक समझ लेना, विधि द्वारा आश्रित जानवरों के स्वास्थ्य की जांच कराना तथा यथायोग्य उपचार करना भी मानव का ही दायित्व है क्योंकि यातनाएं सहन करते हुए भी मूक जीव शिकायत नहीं कर सकते। दमयित जानवरों की समस्या का समाधान सरल है- जंगली जानवरों का दमन बन्द करने से कोई समस्या सामने नहीं आती। मौजूद दमयित जानवरों का आश्रित जानवरों की तरह संगोपन करने की जिम्मेदारी निभाना हमारा नैतिक दायित्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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