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________________ अर्थ :- अमारा कुल क्रमथी आवेली आकाशगामिनी वगेरे साधवा योग्य विद्याओ विधिपूर्वक पिताए मने आपी। हिन्दी अनुवाद :- हमारे कुल क्रम से आई हुई आकाशगामिनी आदि विद्याएं सिद्ध करने के लिए पिता ने मुझे विधि सहित दी। गाहा :- यौवनारम्भ दंसिय-मयण-वियारं महिला-जण-हियय-मोहणमुदारं । अह कमसो संपत्तो, अहयं नव-जोव्वणारंभं ।। २९।। छाया : दर्शित-मदन-विकारं महिला-जन-हृदय-मोहनमुदारम् । अथ क्रमशः सम्प्राप्तः अहकं नव-यौवनारम्भम् ।।२९।। अर्थ :- स्त्री समुदायना हृदयने माटे आकर्षणरूप अने कामदेवना विकारने बतावनार हुं क्रमथी नवा यौवनारम्भने पाम्यो। हिन्दी अनुवाद :- स्त्री समुदाय के हृदय के लिये आकर्षक और कामदेव तुल्य नूतन यौवनारम्भ मैंने पाया। गाहा :- उद्यान प्रति गमन अन्नम्मि दिणम्मि अहं समाण-जोव्वण-वयंस-परियरिओ। पत्तो अणेय-तरु-संड-मंडियं महणरुज्जाणं ।।३०।। छाया: अन्यस्मिन् दिने अहं समान-यौवन-वयस्य-परिवृतः। प्राप्तोऽनेक-तरु-खंड-मण्डितं मनोहरोद्यानम् ।।३०।। अर्थ :- कोई एक दिवस हुं सरखे सरखा मित्रोनी साथे परिवरेलो अनेक वृक्ष खंडोथी शोभता मनोहर उद्यानमां पंहोच्यो। हिन्दी अनुवाद :- कभी एक दिन समान वयस्क मित्रों से परिवृत, अनेक वृक्ष खंडों से मण्डित उद्यान में मैं जा पंहुचा। गाहा :- उद्यानमां क्रीडा तथा देवो ने जोवुः पारद्ध-विविह-कीला चिट्ठामो जा खणंतरं तत्थ । ताव य गयणे दिट्ठा दिव्व-विमाणाण रिंछोली ।।३९।। पसरंत-पवर- रयणोरु-दित्ति-विच्छुरिय-नह-यलाऽऽ भोया । उत्तरदिसा पयट्टा सुर-सुंदरी गेय-सोहिल्ला ।। ३२।। छाया: प्रारब्ध-विविध-क्रीडाःतिष्ठामः यावत् क्षणांतरं तत्र । तावच्च गगने दृष्टा दिव्य-विमानानां पङ्कितः ।।३९।। 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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