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जीवदया: धार्मिक एवं वैज्ञानिक आयाम : ११
करते हैं।१६ क्या हिंसात्मक अनुसंधान पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये? जैव तंत्रवाद से विकसित विधि द्वारा मनुष्यों के 'क्लोन' का निर्माण सम्भव है। ऐसे प्रयोगों के दूरगामी परिणाम क्या होंगे? क्या यह धर्मसम्मत होगा? क्या इसपर कानूनी प्रतिबन्ध समर्थनीय है? ऐसे कई ज्वलंत प्रश्न हैं जिनके सभी आयाम परखकर कुछ सुनिश्चित नीति निर्धारण करना अनिवार्य बन गया है। इसमें वैज्ञानिक, विधिवेत्ता तथा धार्मिक चिन्तक ही नहीं, सामान्य नागरिक का भी सम्मिलित होना आवश्यक है।
३. स्वतन्त्र जीव वे हैं जो निसर्ग में अपना भरण-पोषण करते हुए प्रजनन द्वारा अपनी संख्या अन्य जीवों की संख्या के योग्य अनुपात में रख सकते हैं। जीवविकास क्रम में मानव के उदय से भी पहले लाखों वर्ष से स्वतन्त्र प्राणी इस प्रकार निसर्ग की व्यवस्था में निरन्तर विद्यमान हैं। इस व्यवस्था को स्थिर रखने में मानव के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। जबतक मानव हस्तक्षेप नहीं करता तबतक इन जीवों को या मानव को कोई बाधा नहीं पहुंच सकती। जब मानव निसर्ग की व्यवस्था में बदलाव करने लगता है तब इन जीवों का जीना कठिन बनता है तथा अन्त में मानव जाति पर ही इसके दुष्परिणाम दिखाई देते हैं। अतः इन जीवों के विषय में उदासीनता भाव रखता ही मानव के लिए हितकारक है।
(ग) सर्वथा त्याज्य हिंसा
कई धार्मिक अनुष्ठानों में पशुबलि देने की प्राचीन प्रथा अब सुसंस्कृत एवं प्रबुद्ध समाज में समाप्त हो चुकी है। फिर भी अज्ञानवश तथा रूढ़ि के खिलाफ जाने की हिम्मत न होने के कारण कुछ प्रदेशों में पशुबलि की प्रथा जारी है। इसे कानून द्वारा रोकना धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था में सम्भव नहीं है। यदि धार्मिक नेता अपने-अपने समाज में इसके बारे में उपदेश देकर अहिंसा का संदेश फैलायें तो यह कुप्रथा समाप्त हो सकती है। सही ढंग से वैज्ञानिक कारण देते हुए प्रचार करने पर इस कार्य में सभी लोगों का सहकार्य मिल सकता है। सन् १९९९ में श्री महावीर जयन्ती तथा बक्रीद एक ही दिन आयी। जैन समुदाय की भावनाओं की कद्र करते हुए मैसूर (कर्नाटक) के मुसलमानों ने उस दिन कुर्बानी न देने का निश्चय किया। इस से स्पष्ट होता है कि अहिंसा तत्त्व के प्रति सबको आदर है।
आदिमानव के लिए मृगया (शिकार) जीवनावश्यक काम था। तीर या धारदार हथियार से जानवर मारे जाते थे। यह एक साहसपूर्ण काम था। कभी-कभी उग्र जानवर जख्मी होकर शिकारी को भी मार देता था। क्रमशः तेज रोशनी के सर्चलाईट तथा बंदूक जैसे हथियार विकसित किऐ गये। इससे मानव का वर्चस्व बढ़ा। फलस्वरूप नि:सहाय जीव मानव का सामना करने में असमर्थ हो गये। यद्यपि समय के साथ खेती Jain Education International For Private & Personal Use Only
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