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________________ २ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००४ बाद ही सर्वज्ञता प्रकट होने वाली हो, उसे 'निम्रन्थ' कहते हैं तथा जिसमें सर्वज्ञता प्रकट हो गई हो, वह 'स्नातक' कहलाता है। उपर्युक्त पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थ सभी तीर्थंकरों के धर्म शासन में होते हैं। बौद्ध-साहित्य में निम्रन्थ : जैन-श्रमणों का पर्याय 'निर्ग्रन्थ' शब्द 'निग्गंथ' या 'निगंठ' शब्द जैनों का पारिभाषिक शब्द है। भगवान् महावीर अपने समय में 'निग्गंठ नातपुत्त' के नाम से जाने जाते थे। बौद्ध पालि-ग्रन्थों में एवं अशोक के शिला-लेखों में भगवान महावीर के लिए इस शब्द का कई स्थानों पर प्रयोग हुआ है। बौद्ध-ग्रन्थ दीघनिकाय में लिखा है कि निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र संघ के नेता हैं, गणाचार्य हैं, दर्शनविशेष के प्रणेता हैं, विशेष विख्यात हैं, तीर्थंकर हैं, साधु-सम्मत, बहुजन पूज्य, चिर प्रव्रजित एवं वय को प्राप्त हैं। मज्झिमनिकाय में भी भगवान महावीर को 'निर्ग्रन्थ' शब्द से संबोधित किया है। यहां पार्श्वनाथ परम्परा के साधुओं का उल्लेख करते हुए कहा है - 'यहाँ एक चातुर्याम संवर से संवृत्त सब वारि (पाप) से निवारित, सब वारितों का निवारण करने में तत्पर, सब वारि (पाप) से धुला हुआ, सब वारि (पाप) से छूटा हुआ निर्ग्रन्थ (जैन साधु) है। भगवान् महावीर के समय ही उनके श्रमणों के लिए भी 'निर्ग्रन्थ' शब्द का प्रयोग बौद्धों के त्रिपिटक साहित्य में विभिन्न स्थानों पर देखने को मिलता है। दीघनिकाय में उल्लेख है कि 'कौशल का राजा पसेनदी (प्रसेनजित) निर्ग्रन्थों को नमस्कार करता था। उसकी रानी ने निर्ग्रन्थों के उपयोग के लिए भवन बनाया। महावग्ग में लिखा है कि 'एक बड़ी संख्या में निर्ग्रन्थ वैशाली में सड़क और चौराहों पर दिखाई देते थे। उपालिसुत्त में उल्लेख है कि 'भगवान् महावीर जब नालन्दा में विहार कर रहे थे, उस समय उनके साथ एक बड़ी संख्या में निर्ग्रन्थ साधु थे। वे दीर्घ तपस्वी थे। निर्ग्रन्थ धर्म की प्राचीनता : उक्त उल्लेखों में यह तो स्पष्ट है कि जैन और बौद्ध साहित्य में 'निर्ग्रन्थ' शब्द 'जैन-श्रमण' के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। स्वयं गौतम बुद्ध ने महावीर को 'निग्गंठ नातपुत्त' एवं उनके अनुयायी श्रमणों को 'निग्गंठ' कहकर संबोधित किया है। महावीर ने भी अपने श्रमण एवं श्रमणियों के लिए स्थान-स्थान पर 'निग्गंथा, निग्गंथीण, निग्गंथीओं' कहकर उल्लेख किया है। अत: यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि महावीर के समय यह धर्म 'निर्ग्रन्थ धर्म' के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। इस शब्द का अधिकाधिक प्रयोग आगम, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि में होने लगा था, किंतु इसकी प्राचीनता महावीर से पूर्व काल में भी देखी जाती है। महावीर से पूर्व निर्ग्रन्थ धर्म बौद्धग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, चतुवक्कनिपात एवं उसकी अट्ठकथा में गौतम बुद्ध के चाचा ‘बप्प' नाम के शाक्य को निर्ग्रन्थ श्रावक बतलाया है जो महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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