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________________ श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०.१२ अक्टूबर-दिसम्बर २००४ जैन एवं बौद्ध श्रमण-संघ में विधि शास्त्र का विकास : एक परिचय डॉ० चन्द्ररेखा सिंह मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में आचारगत विधि-व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय धर्म-परम्परा के परिप्रेक्ष्य में आचारशास्त्र (विधिशास्त्र) के विभिन्न सिद्धान्तों, दृष्टियों और मर्यादाओं का वर्गीकरण हुआ। तदनरूप धर्म या सम्प्रदाय विशेष में प्रतिष्ठापित नियमों, सिद्धान्तों के अनुरूप व्यक्ति अपने आचार-व्यवस्था या विधि या नैतिक-व्यवस्था का पालन करता है। अतएव प्राय: सभी धर्मों का केन्द्रबिन्दु यही आचारगत-नैतिक व्यवस्था मानी जाती है। इसीलिए यह मानव धर्म का नियामक तत्त्व भी है। देशकालानुसार इन विधि-व्यवस्थाओं में परिवर्तन-परिवर्धन होते रहते हैं। भारतीय संस्कृति की दो मूलधारायें हैं - एक प्रवृत्तिमार्गी वैदिक(ब्राह्मण) संस्कृति और दूसरी निवृत्तिमार्गी श्रमण संस्कृति। दोनों संस्कृतियों में श्रमण वर्ग के आचार के अनेक नियम, उपनियम एवं विधि सम्बन्धी सिद्धान्तों का उल्लेख मिलता है। श्रमण संस्कृति के प्रतिनिधि बौद्ध व जैन धर्म में विधि-संहिता सम्बन्धी नियमोंपनियमों का वर्णन प्रधान रूप से मिलता है। विधि-व्यवस्था को प्रतिष्ठापित करने के लिए इन दोनों धर्मों में संघ को चार भागों में विभाजित किया गया है - १. भिक्षु संघ, २. भिक्षुणी संघ, ३. श्रावकसंघ (उपासक संघ), ४. श्राविका संघ (उपासिका संघ) भिक्षु-भिक्षुणियों (साधु-साध्वियों) का सुव्यवस्थित एवं नियमित धार्मिक संगठन होता है जबकि श्रावक-श्राविकाओं का संघ उतना नियमित और संगठित नहीं होता है। श्रावक-श्राविकाओं को अपने व्रत, नियम, कर्तव्य आदि के पालन में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होती है। वे अपनी रुचि, शक्ति, परिस्थिति आदि के अनुसार यथायोग्य धार्मिक क्रिया-काण्ड करते हैं एवं समाज के सामान्य नियमानुसार व्यावहारिक प्रवृत्तियों में लगे रहते हैं। गृहस्थ वर्ग समाज-व्यवस्था का परिपालन जीवनोपयोगी वस्तुओं का उत्पादन एवं संरक्षण करके करता है, जबकि श्रमण वर्ग सांसारिक वस्तुओं के पूर्णत: त्याग का उद्देश्य लेकर आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर * पूर्व शोध छात्रा, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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