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________________ छाया: सम्प्राप्त-यौवना सा आभरण-विभूषिता-पितृ-सकाशे । प्रस्थापिता मात्रा तदुचित-वर-दानार्थम् ||१५५|| अर्थ :- प्राप्त थयेला यौवनवाळी, आभरणथी विभूषित तेने माता वड़े उचित वर जोवा माटे पिता पासे मोकलावाइ. हिन्दी अनुवाद :- नव यौवना, आभरणों से अलंकृत वह पुत्री माता द्वारा उचित पति के लिए पिता के पास भेजी गयी। गाहा : आगम्म पाय-पडिया पिउणा सा सहरिसं निउच्छंगे। विणिवेसिय अवगूढा भणिया य इमं तु सा कन्ना ॥१५६॥ छाया : आगम्य पाद-पतिता पित्रा सा सहर्षं निजोत्संगे। विनिवेश्य अवगूढा भणिता च इयं तु सा कन्या ।।१५६।। अर्थ :- आवीने पगे पडेली ते पितावड़े हर्षसहित पोताना खोणामां बेसाडाइ अने बेसाडीने आ रीते कन्या कहेवायी. हिन्दी अनुवाद :- पिता के चरण स्पर्श करती हुई वह बाला हर्षयुक्त पिता द्वारा अपनी गोदी में बैठाई गयी और वे पुत्री से कहने लगे। गाहा : पुत्ति ! निय-हियय-इटुं सामंत महंतयाण मज्झम्मि । साहसु जेण तुहं सो किज्जइ भत्ता किमन्नेणं ? ॥१५७॥ छाया : पुत्रि ! निज-हृदयेष्टं सामन्त महन्तकानां मध्ये । कथय येन तव स क्रियते भर्ता, किमन्येन ।।१५७।। अर्थ :- हे पुत्री ! सामन्त महन्तकोनी मध्यमां तारे पोताने जे हृदयेष्ट होय ते कहे जेथी तारो ते पति कराय, बीजावडे शुं? हिन्दी अनुवाद :- हे पुत्री ! सामन्त और महन्तों के मध्य में तुझे जो इष्ट है वह बोल। जिससे तेरा पति वह किया जाय। औरों से क्या मतलब। गाहा : एवं पिउणा भणिता लज्जाए अहोमुही ठिया बाला। पुणरुत्तं पदावि ह न किंचि पडिउत्तरं देइ ॥१५८।। छाया : एवं पित्रा भणिता लज्जया अधोमुखी स्थिता बाला | पुनरुक्तं (भूयः) पृष्टापि खलु न किञ्चिद् प्रत्युत्तरं ददाति ।।१५८।। अर्थ :- आ प्रमाणे पितावड़े कहेवायेली लज्जा वड़े अधोमुखी ते बाला रही. पुछायेली पण ते कांइज प्रत्युत्तर आपती नथी. 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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