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________________ छाया: सुमति-मुखैः तावत् नानाविध-शोक-मोचन-पटुभिः । बुध्यमानो गिराभिः जातः कालेन गत-शोकः ।।१४५।। अर्थ :- विविधप्रकारना शोक ने दूर करवामां चतुर सुमतिनी प्रिय वाणीवड़े बोध पमाडातो केटलाक काले शोक रहित थयो. हिन्दी अनुवाद :- विविध प्रकार के शोक को दूर करने में चतुर सुमति की प्रिय वाणी से बोधित कितने ही दिनों के बाद शोक दूर हुआ। पुत्रनो ज्ञानाभ्यास गाहा: नाऊण अट्ठ-वरिसं ममं तओ गरुय-पुत्त-नेहेण । संगहिय उवज्झायं गाहेइ कलाण संदोहं ॥१४६।। छाया : ज्ञात्वाऽष्ट वर्षं मम ततः गुरु-पुत्रस्नेहेन । संगृहित उपाध्यायं ग्रहितुं कलानां सन्दोहम् ||१४६।। अर्थ :- मने आठ वर्षनो जाणीने अत्यंत पुत्रना स्नेहवड़े कलाना रहस्योने ग्रहण करवा माटे उपाध्याय पासे रखायो. हिन्दी अनुवाद :- आठ साल का मुझे जानकर पुत्र के अति स्नेह के वश कलाओं के रहस्यों को ग्रहण करने हेतु उपाध्याय के पास भेजा गया। संतुष्ट पिता द्वारा पुत्र ने भेंट गाहा : गहिए कला-कलावे गाम-सहस्सं तया महं दिन्नं । मह दसणेण राया साहारइ देवि-विरहंपि ॥१४७ मह छाया: गृहिते कला - कलापे ग्राम - सहसं तदा मह्यम् दत्तम् । मम दर्शनेन राजा संधारयति देवि-विरहमपि ।।१४७।। अर्थ :- कला समूह ग्रहण करते छते पितावड़े मने भेटमा हजार गामों अपाया अने मने जोवाथी राजा देविना विरहने पण भूली जता हता. हिन्दी अनुवाद :- संपूर्ण कला ग्रहण करने पर पिताजी द्वारा मुझे हजार गाँव भेंट में दिये गये और मुझे देखने पर राजा देवी के विरह को भी भूल जाते थे। गाहा : अह अन्नया कयाइवि अत्थाण-गयस्स राइणो अत्ति । पणमिय दुवारवालो वज्जरइ सूहवो एवं ॥१४८॥ छाया: अथ अन्यदा कदाचिदपि आस्थान-गतस्य राज्ञः झटिति । प्रणम्य द्वारपालः कथयति सूभगः एवम् ।।१४८।। 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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