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________________ ८ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००४ समाधिमरण लेने वाला साधक भी शरीर एवं उनमें उपस्थित सद्गुणों की रक्षा करता है। इस प्रकार यह कंचन काया भी सांसारिक वस्तही है और सामान्यतया प्रत्येक प्राणी को सबसे अधिक आसक्ति अपने शरीर से ही होती है। बीमार होने की परिस्थिति में वह पहले शरीर को बचाने का प्रयास करता है। अर्थात् समाधिमरण के इच्छुक व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से दूर हो जाते हैं। संसार के समस्त भौतिक सुख छोड़कर समाधिमरण धारण कर लेते हैं। ___ उपरोक्त विनय गुण, आचार्य गुण, शिष्य गुण, विनय व्यवहार गुण, चारित्र गुण, विनय, त्याग, व्यवहार, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र, आज्ञा पालन, समाधिमरण, कषायों से रहित जीवन वास्तव में ये सारे गुण मानव में जीवन मूल्य की स्थापना करते हैं जिससे मानव मन शान्ति एवं जीव रक्षा के लिये प्रेरित होता है। जीयो और जीने दो, के सिद्धांत पर बल देता है। मानव एक अहिंसक प्राणी के रूप में दिखाई देता है, यही अहिंसा, यही जीवरक्षा, यही मानव मूल्य, यही समता की भावना पर्यावरण संरक्षण नहीं है तो क्या है। पर्यावरण की समस्या अब सामने आई है जबकि तीर्थंकरों ने ये बातें पूर्व में ही कही हैं। वस्तुत: चद्रवेध्यक प्रकीर्णक में प्रतिपादित आदर्श एवं जीवन व्यवहार में प्रतिपादित तत्त्व पर्यावरण संरक्षक के पोषक है।। सन्दर्भ : १. मधुकर मुनि, समवायांग सूत्र, ८४वां समवाय। २. अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-१, पृ० ४१. ३. सुरेश सिसोदिया, चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक, प्रका० - आगम अहिंसा एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, प्रस्तावना, पृ०.४-५. ४. मधुकर मुनि, नंदीसूत्र, पृ० १६१-१६२. ५. अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-३, पृ० १०९७. ६. सुरेश सिसोदिया, चंद्रवेध्यक प्रकीर्णक, गाथा ४०. ७. वही, गाथा ६२. ८. सिसोदिया, चंद्रवेध्यक प्रकीर्णक, गाथा ४०.. ९. वही, गाथा, ७ से ९. १०. वही, पृ० ९, गाथा, २२ से २६. ११. भगवतीआराधना, गाथा ४१९-४२०. १२. वही, गाथा ५२७. १३. प्रवचनसारोद्धार, देवचंद्र लालभाई जैन पुस्कोद्धार, गाथा ५४१-५४९. १४. सिसोदिया, चंद्रवेध्यक प्रकीर्णक, गाथा ५७ से ६३. १५. वही, भूमिका, पृ० १५. १६. वही, पृ० १५, गाथा ६१-६३. १७. वही, पृ० १६, गाथा ७७. १८. वही, गाथा, ८३-८४. १९. वही, गाथा, ११४. २०. उत्तराध्ययनसूत्र, २८./३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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