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________________ ९० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९ / जुलाई-सितम्बर २००४ देवतिलक ने वि० सं० १५६१ में अपने शिष्यों के पठनार्थ प्रश्नव्याकरणसूत्र का संशोधन किया और वि० सं० १५६६ में देवतिलक के गुरु ज्ञानमंदिरगणि ने अपने शिष्य के पठनार्थ सूत्रकृतांगसूत्र और उसकी निर्युक्ति की प्रतिलिपि की । Muni Punya Vijaya, वही, प्रशस्ति क्रमांक १६७८, पृ० ३१६ तथा प्रशस्ति क्रमांक १४०२, पृ० २९७. ८. सागरचन्द्रसूरि मुणिवइ अ मा० तिहां आचारिज सार, महिमराज वाचक हूया ओ मा०तसु तणा सीस विचार । ||२६|| तासु सीस गुणमणितिल अ मा० दयासागर वणारीस, मुनिगुणे सहित वाचकवइ ओ मा० ज्ञानमंदिर तसू सीस | ||२७|| अनुक्रम गुणमणिआगरु ओ मा० श्री देवतिलक उवज्झाय, प्रभुगणि जाणीय अ मा० तसु तणउ सीस सूजाय | ॥२८॥ अंतेवासी तेहनउ में मां हीरकलस मुनि सार, मुनिपति मुणिवर चउपइ ओ मां० कीधी अति सुविचार | ||२९|| संवत सोल अठरोतरे ओ मां माह वदि सातमी जांणि, वार रवि हस्त नक्षत्र सिउ अ मा० चउपइ वडी प्रमाण| ||३०|| गाथा मान हवि बोलीइ ओ मा सातसि उपरि तेत्रीस, मुनिपति मुनिवर चउपइ अ मा० भणतां मनि सुजगीस। ॥३१॥ जां लगई मेरु महीधरु अ मा० जां लगि द्र ससि भाण, तां लगि ओ रिषि चउपइ ओ मा० वापरउ जग मांहि जाणि । ||३२|| इतिश्री मुनिपति रिषि चरीयइ ओ मा० श्री वीकानयर मजारि, रिसह जिणंद पसाउलइ ओ मा० रचियउ चरिय उदार । ||३३|| मोहन लाल दलीचंद देसाई, संपा, जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संस्करण, भाग २, संपादक - डा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८७ ईस्वी, पृष्ठ ३६, क्रमांक ९४०. ९. कुसीलउथापक सुसीलसंस्थापक सागरचंद सूरिराय वयणायरी रयणकीरति गणिचंद, श्रीसमयभक्त वरवाचका वीर विणेयानंद रूपकमाला शीलनी पभणइ श्रीपुण्यनंदि । मोहनलाल दलीचंद देसाई, पूर्वोक्त, भाग १, द्वितीय संस्करण, मुम्बई १९८६ ईस्वी, पृष्ठ १५२, क्रमांक २२९. १०. वही, भाग २, पृष्ठ ३१३. १९. वही, भाग २, पृष्ठ ३४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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