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________________ नेमिदूतम् का अलङ्कार - लावण्य यहाँ नेमिनाथ के सौन्दर्य की तुलना में उपमानस्वरूप कामदेव के सौन्दर्य की न्यूनता वर्णित होने से व्यतिरेक अलङ्कार है। इसके अतिरिक्त एक अन्य पद्य में८३ भी व्यतिरेक अलङ्कार का मनोरम प्रयोग हुआ है। विषम - विषम विरोधमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार यदि कार्य और कारण के गुण या क्रियाएँ परस्पर विरुद्ध हों अथवा आरम्भ किया हुआ कार्य पूर्ण न हो, प्रत्युत कुछ अनर्थ आ पड़े अथवा दो विरूप पदार्थों का मेल हो तो वहाँ विषम अलङ्कार होता है - गुणौ क्रिये वा चेत्स्यातां विरुद्धे हेतुकार्ययोः । यद्वारब्धस्य वैफल्यमनर्थस्य च सम्भवः ।। विरूपयोः संघटना या च तद्विषमं मतम् । ८४ नेमिदूतम् के निम्नोद्धृत पद्य में विषम अलङ्कार की सराहनीय अन्विति हुई है - रम्याहयैः क्व तव नगरी दुर्गशृङ्ग क्व चाद्रि:, क्वैतत्काम्यं तव मृदुवपुः क्व व्रतं दुःखचर्य्यम् | 24 .५ 'कहाँ तो धनिकों के गृहों से मनोहर तुम्हारी द्वारिका नगरी और कहाँ विषम शिखर वाला पर्वत ? कहाँ तुम्हारा यह कोमल सुन्दर शरीर और कहाँ दुःखपूर्वक आचरणीय तुम्हारी तपस्या ?' इस प्रकार दो विरूप पदार्थों की संघटना होने से यहाँ विषम अलङ्कार है। मम्मट के तुल्ययोगिता - यह गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य अनुसार नियत (केवल प्राकृत अथवा केवल अप्रकृत अर्थों) का एक धर्म के साथ सम्बन्ध होने पर तुल्ययोगिता अलङ्कार होता है - नियतानां सकृद्धर्मः सा पुनस्तुल्ययोगिता । ८६ : ७१ नेमिदूतम् में एक स्थान पर तुल्ययोगिता अलङ्कार का आकर्षक विनियोग हुआ है - यस्यां पुष्पोपचयममलं भूषणं सीधुहद्यं, गन्धद्रव्यं वसननिवहं सूक्ष्ममिच्छानुकूलम् । न्यस्तः प्रीत्या त्रिदशपतिना वासुदेवस्य वेश्मन्येकः सूते सकलमबलामण्डनं कल्पवृक्षः ॥ ८७ यहाँ से सम्बन्ध होने के कारण तुल्ययोगिता अलङ्कार है। प्रस्तुत (आभूषण, गन्धद्रव्य तथा वस्त्रसमूह) का एक धर्म (सूते) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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