SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत साहित्य का कथात्मक महत्त्व : ४१ मरने के डर से एवं प्रेम की पराकाष्ठा के कारण एक दूसरे की सौगन्ध नहीं खाते हैं। यही कथा वसुदेवहिण्डी में भी आती है । ३७ ३६ उपर्युक्त कथाओं के आधार पर प्राकृत साहित्य में दान, शील, तप-भावना, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह आदि कषायों, जीवदया, ब्रह्मचर्य शरणागतवात्सल्य, मैत्री, सदाचार, प्रेम, जिनवंदन, लोक-कल्याण आदि जीवन मूल्यों एवं मानवीय गुणों से ओत-प्रोत कथाओं का समावेश है। ये कथायें वास्तव में दार्शनिक गुत्थियों को सुलझाने में सहायक हैं जो मानव समाज एवं देश के विकास में अत्यन्त उपयोगी हैं। ये कथायें अंगूर के गुच्छों के समान हैं जिन्हें बिना कुछ प्रयास करने पर भी आत्मसात् किया जा सकता है। इन्हें जीवन में आसानी से उतार कर प्राणी अपना कल्याण कर सकता है। आज के युग में प्रचलित दानवीय प्रवृत्तियां, अनेक अवगुणों, तनाव, लोभ, मोह आदि समस्याओं का समाधान इन कथाओं के माध्यम से किया जा सकता है। इन कथाओं में मानव से भी ज्यादा श्रेष्ठ पशु-पक्षी हैं, जो संयम, शील, अनुशासन, शरणागतवात्सल्य आदि गुणों से ओत-प्रोत हैं। मानव को भी उससे कुछ सीखना चाहिये तभी हमारा कल्याण संभव है। सन्दर्भ : १. (अ) ज्ञाताधर्मकथा, अध्ययन- ४. (ब) नेमिचंद्र शास्त्री, हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ० ८३. २. शास्त्री, पूर्वोक्त, पृ० ४९२. ३. हुकमचंद जैन, रयणचूडरायचरियं का समालोचनात्मक अध्ययन, पृ० ४८. ४. वही, पृ० ४३७. ५. वही, अनु०५, पृ० ५४. (ब) जातक खण्ड ४, 'शिवि जातक' ६. ज्ञाताधर्मकथा, कर्म अध्ययन ७. सुधा खाब्या, रत्नशेखरीनृपकथा का समालोचनात्मक अध्ययन, पृ० २३४. ८. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन - २२. ९. दशवैकालिकनिर्युक्ति, अध्याय- २, गाथा क्रमांक ८. १०. हुकमचंद जैन, पूर्वोक्त, पृ० ३९. ११. (अ) आचार्य नेमिचंद्रसूरिकृत आख्यानकमणिकोश, रोहिण्याख्यानकम्, संपा० मुनि पुण्यविजय, वाराणसी १९६२ ई०, पृ० ६३-६४. (ब) प्रेमसुमन जैन, रोहिणी कथानक, पृ० २९, गाथा, ६३ से ६८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy