SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यकसूत्र का स्रोत एवं वैशिष्ट्य : २७ परखता है। आवश्यकसूत्र वस्तुतः आत्मनिरीक्षण, आत्मपरीक्षण और आत्मोत्कर्ष का वह श्रेष्ठतम उपाय है, जिसकी साधना और आराधना से आत्मा शाश्वत सुख का लाभ करता है, कर्म मल को नष्ट कर सम्यक्दर्शन-ज्ञान व चारित्र से आध्यात्मिक आलोक को प्राप्त करता है। आवश्यकसूत्र एक श्रुतस्कन्ध है जिसमें प्रतिपादित आचार के नियमों का पालन महावीर पूर्व में होता था, उनके समय में हुआ तथा उनके निर्वाण-प्राप्ति के पश्चात् भी होता रहा है। अर्थात् आचार के नियमों के पालन की अनिवार्यता प्रत्येक समय में रही है। अन्तर सिर्फ इतना ही है कि महावीर के पूर्व यह केवल श्रमणों हेतु आचरणीय था, तथापि महावीर ने अपने समय में चतुर्विध संघ अर्थात् श्रावक, श्राविका, श्रमण और श्रमणी सभी के लिए समान रूप से समाचरण करने की आज्ञा प्रदान की। महावीर से पूर्व आवश्यकसूत्र नाम अनुपलब्ध था, तथापि इसके छः अध्ययनों का पृथक-पृथक रूप से अस्तित्त्व ज्ञात होता है और साथ ही उनका पालन भी पृथक-पृथक रूप से सम्पन्न होता था। महावीर के समय में गणधरों ने पृथकपृथक छ: अध्ययनों को संकलित कर सूत्र रूप में गम्फित कर उसे 'षडावश्यक' की संज्ञा से अभिहित किया। जैनागम साहित्य में आवश्यकसूत्र के कर्ता व रचनाकाल के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का वर्णन प्राप्त नहीं होता है। नवसुत्ताणि में संभावना व्यक्ति हुई है कि आवश्यकसूत्र भगवान् महावीर के शासनकाल में निर्मित आगम है। इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि 'आवश्यक' शब्द का सदभाव महावीर के पूर्व में नहीं था और न ही आवश्यकसूत्र के छ: अध्ययन एक-साथ एक ही स्थान पर प्राप्त होते हैं, प्रत्युत वे पृथक-पृथक़ रूप में पृथक-पृथक जैनागमों में सम्प्राप्त होते हैं। वस्तुत: ये संकलित रूप में महावीर के समय से ही अस्तित्व में आए। 'आवश्यक' नाम भगवती, स्थानांग तथा ज्ञाताधर्मकथा' में भी सम्प्राप्त होता है। चूँकि उक्त सभी ग्रन्थ महावीर द्वारा उपदिष्ट तथा गणधरों द्वारा ग्रथित द्वादशांगी के अंग हैं, अत: इस आधार पर भी कहा जा सकता है कि आवश्यकसूत्र की रचना महावीर के समय में ही हुई है। यदि इसके सर्वाधिक प्राचीनतम व्याख्या साहित्य को आधार बनाया जाए तो भी इसकी रचना का समय महावीर के काल अथवा उसके आस-पास ही ज्ञात होता है। आवश्यकसूत्र की सर्वाधिक प्राचीन व्याख्या साहित्य आवश्यकनियुक्ति है और जिसके कर्ता आचार्य भद्रबाहु हैं। इनका समय वि० सं० ५०० से वि०सं० ६०० के मध्य में है, तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आवश्यकसूत्र की रचना इससे और भी पूर्व में हुई है। अर्थात् आवश्यकसूत्र की रचना महावीर के काल में अथवा उनके कुछ पश्चात् हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy