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________________ २४ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९/जुलाई-सितम्बर २००४ १३. दर्शनविशुद्धिविनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तिस्त्यागतपसी ___ संघसाधुसमाधिवैयावृत्त्यकरणमर्हदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभवनाप्रवचन वत्सलत्वमिति तीर्थकृत्त्वस्य। - तत्त्वार्थसूत्र, ६.२३ १४. तान्येतानि षोडशकारणानिसम्यग्भव्यमानानि व्यस्तानि च तीर्थङ्कर नाम कर्मास्रवकारणानिप्रत्येतव्यानि।-सर्वार्थसिद्धि, ६.२४ पृ० २६१(भारतीय ज्ञानपीठ) १५.नियमा मणुयगईए, इत्थी पुरिसेयरो य सुहलेसो। आसेवियबहुलेहि, वीसाए अण्णयरएहिं।। - आवश्यकनियुक्ति, १८४ (नियुक्तिसंग्रह, हर्षपुष्पामृत ग्रन्थमाला) १६.द्वितीय कर्मग्रन्थ, बन्ध-विवेचन, गाथा ६ एवं ९-१०. १७.द्वितीय कर्मग्रन्थ, में उदय, उदीरणा एवं सत्ता का विवेचन द्रष्टव्य। १८.द्वितीय कर्मग्रन्थ, श्री मरुधरकेसरी साहित्य प्रकाशन समिति, ब्यावर, परिशिष्ट पृ० २०९-२१०. १९. पढमुवसमिये सम्मे सेसतिये अविरदादिचत्तारि। तित्थयरबंधपारंभया णरा केवलिदुगंते।। - गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, गाथा ९३. २०.णिरंतरो बंधो, सगबंधकारणे संते अद्धाक्खएण बंधुवरमाभावादो। - धवला ८.३, ३८.७४.४. २१.निकाचित तीर्थङ्कर प्रकृति वाला जीव तिर्यंचगति में नहीं जाता है, अनिकाचित तीर्थङ्कर प्रकृति वाले जीव के तिर्यंचगति में जाने का निषेध नहीं है, यथा - जमिह निकाइय तित्थं तिरियभवे तं निसेहियं संतं। इयरंमि नत्थि दोसो उवट्टणवट्टणासज्झे।। पंचसंग्रह ५.४४ विशेषणवती में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी कहा है - तं पि सुनिकाइस्सेव तइय भवभाविणो विणिछिटुं। अणिकाइयम्मि वच्चइ सव्वगईओ वि न विरोहो।। उद्धृत, पंचसंग्रह, भाग ५ पृ० १७५. २२. आठवें गुणस्थान का जीव अन्तर्मुहूर्त में ही केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है और तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध आठवें गुणस्थान के छठे भाग तक मान्य है। २३. तीर्थङ्कर प्रकृति का उत्कृष्ट बंध निरूपित करने के प्रसंग में यह बात स्पष्ट होती है - तित्थयरनामस्स उक्कोसठिई मणुस्सो असंजओ वेयगसम्मद्दिट्ठी पुव्वं नरगबद्धाउगो नरगाभिमुहो मिच्छत्तं पविवज्जिही। - पंचसंग्रह, प्रथमभाग, मलयगिरि टीका, उद्धृत, पंचम कर्मग्रन्थ (ब्यावर) पृ० १६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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