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________________ जैन गुफाएँ : ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व : ९३ शिलालेखों तथा कलाकृतियों के आधार पर खारवेल के समीपवर्ती काल की प्रतीत होती हैं। खण्डगिरि की नवमनि नामक गुफा में दसवीं शती का एक शिलालेख है जिसमें जैन मुनि शुभचन्द्र का नाम आया है। इससे ज्ञात होता है कि यह स्थान ई० पूर्व द्वितीय शती से लेकर दसवीं शती ई० तक जैनधर्म का सुदृढ़ केन्द्र रहा है। राजगिरि की एक पहाड़ी में मनियार मठ के समीप सोन भण्डार नामक जैन गुफा उल्लेखनीय है, जो निर्माण की दृष्टि से प्राचीन प्रतीत होती है। इसमें ब्राह्मी लिपि का एक लेख भी है जिसके अनुसार आचार्य वैरदेवमुनि ने यहाँ जैन मुनियों के निवास के लिए दो गुफाएँ निर्माण करवायीं और उनमें अर्हन्तों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित कराई। एक जैन मूर्ति तथा चतुर्मुखी जैन प्रतिमा युक्त स्तम्भ यहाँ अब भी विद्यमान है। जिस दूसरी गुफा के निर्माण का लेख में उल्लेख है, वह निश्चय ही उसके पार्श्व में स्थित गुफा है। प्रयाग तथा कोसम (प्राचीन कौशाम्बी) के समीप पभोसा नामक स्थान पर दो गुफाएँ हैं, जिनमें शुंगकालीन (ई०पू० द्वितीय शती) लेख हैं, में कहा गया है कि इन गुफाओं को अहिच्छत्रा के आषाढ़सेन ने काश्यपीय अर्हन्तों के लिए दान किया। स्मरणीय है कि तीर्थङ्कर महावीर काश्यप मोत्रीय थे, उन्हीं के अनुयायी मुनि काश्यपीय अर्हत् कहलाए। इससे यह भी ज्ञात होता है कि उस काल में महावीर के अनुयायियों के अतिरिक्त अन्य जैनमुनि संघ सम्भवत: पार्श्वनाथ के अनुयायियों का रहा होगा, जो महावीर की मुनि-परम्परा में विलीन हो गया। जूनागढ़ (काठियावाड़) के बाबा प्यारामठ के समीप तीन पंक्तियों में स्थित कुछ गुफाएँ हैं। ये सभी गुफाएँ दो भागों में विभक्त हैं - एक तो चैत्य-गुफाएँ और दूसरे भाग में वे गुफाएँ एवं शालागृह हैं जो प्रथम भाग की गुफाओं से कुछ उन्नत शैली की हैं और जिनमें जैन चिह्न पाए जाते हैं। ये द्वितीय शती ई० अर्थात् क्षत्रप राजाओं के काल की हैं। एक गुफा में खण्डित लेख मिला है उसमें क्षत्रप राजवंश का तथा चष्टन के प्रपौत्र व जयदामन् के पौत्र रुद्रसिंह 'प्रथम' का उल्लेख है। इस खण्डित लेख में केवल-ज्ञान, जरामरण से मुक्ति आदि शब्द हैं और गुफा में अंकित स्वस्तिक, भद्रासन, मीन-युगल आदि जैन मांगलिक प्रतीकों से जैन साधुओं, सम्भवत: दिगम्बर अंग ज्ञाता धरसेनाचार्य से सम्बन्ध अनुमानित किया जाता है। धवलाटीका के कर्ता वीरसेनाचार्य ने धरसेनाचार्य को गिरिनगर की चन्द्रगफा का निवासी कहा है। इसी स्थान के समीप ढंक नामक स्थान पर भी गुफाएँ हैं जिनमें ऋषभ, पार्श्व, महावीर आदि तीर्थङ्करों की प्रतिमाएँ हैं। ये सभी गुफाएँ उसी क्षत्रपकाल अर्थात् प्रथम-द्वितीय शती की सिद्ध होती हैं। जैन साहित्य में ढंक पर्वत का अनेक स्थानों पर उल्लेख है और पादलिप्तसूरि के शिष्य नागार्नर यहीं के निवासी कहे गए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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