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________________ ९४ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४ उदयगिरि मध्यप्रदेश के अन्तर्गत विदिशा के उत्तर-पश्चिम की ओर बेतवा नदी के उस पार दो-तीन मील की दूरी पर स्थित है, जहाँ २० गुफाएँ एवं मन्दिर हैं। इनमें पश्चिम की ओर की प्रथम तथा पूर्व दिशा में स्थित २०वीं, दो स्पष्टत: जैन गुफाएँ हैं। पहली गुफा किसी चट्टान को काटकर नहीं बनाई गई, अपितु एक प्राकृतिक कन्दरा है जिसमें ऊपर प्राकृतिक चट्टान को छत बनाकर नीचे द्वार पर चार खम्भे खड़े कर दिए गये हैं जिससे उसे गुफा-मन्दिर की आकृति मिल गई है। जैन मुनि इसी प्रकार की प्राकृतिक गुफाओं को अपना निवास स्थान बनाते थे, इसलिए यह गुफा ई०पू० काल से ही जैन मुनियों की गुफा रही होगी, किन्तु इसका संस्कार गुप्तकाल में हुआ, जैसा कि यहाँ के स्तम्भों की कला एवं गफा में खदे एक लेख से स्पष्ट है। यह लेख गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त 'द्वितीय' का है, जिससे उसका काल चौथी शती का अन्तिम भाग सिद्ध होता है। पूर्व में स्थित २०वी गुफा में पार्श्वनाथ की भव्य मूर्ति विराजमान है, जो यद्यपि बहुत कुछ खण्डित हो गई है, किन्तु उसका नाग-फण अब भी उसकी कला को प्रकट कर रहा है। यहाँ पर भी संस्कृत में एक लेख है जिसके अनुसार इस मूर्ति की प्रतिष्ठा गुप्त संवत् १०६ (ई० सन् ४२६, कुमारगुप्त का काल) में कार्तिक कृष्ण पंचमी को भद्रान्वयी आचार्य गोमर्श मुनि के शिष्य शंकर द्वारा की गई थी। जैन ऐतिहासिक परम्परानुसार अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के समय ई०पू० चौथी शती में हुए थे। उत्तर भारत में १२ वर्ष का घोर दुर्भित पड़ने पर वे जैन संघ लेकर दक्षिण भारत गए और मैसूर प्रदेश के अन्तर्गत श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर उन्होंने जैन केन्द्र स्थापित किया। इस समय मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त भी राज्य-पाट त्यागकर उनके शिष्य हो गए थे और उन्होंने भी श्रवणबेलगोला पहाड़ी पर तपस्या की, जो उनके नाम से चन्द्रगिरि कहलायी। इस पहाड़ी पर एक प्राचीन जैन मन्दिर भी है जो उन्हीं के नाम से चन्द्रगुप्तवसति कहलाता है। उसी पहाड़ी पर एक अत्यन्त साधारण सी छोटी गुफा है, जो भद्रबाह गफा के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि श्रुतकेवली भद्रबाह ने इसी गुफा में देहोत्सर्ग किया था। यहाँ उनके चरण-चिह्न भी अंकित हैं और पूजे जाते हैं। दक्षिण भारत में यही सबसे प्राचीन जैन गुफा है। महाराष्ट्र में उस्मानाबाद से पूर्वोत्तर दिशा में लगभग १२ मील की दूरी पर पर्वत " एक प्राचीन गुफा-समूह है। इसके मध्य में पिछले भाग की ओर देवालय है, जो १९.३४१५ फीट लम्बा-चौड़ा एवं १३ फीट ऊँचा हैं, जिसमें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा विराजमान है। शेष गुफाएँ अपेक्षाकृत बहुत छोटी हैं। तीसरी एवं चौथी गुफाओं में भी जिन-प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। ये गुफाएँ अनुमानत: ई०पू० ५००-६५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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