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________________ ८६ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४ लगता। यदि कोई व्यक्ति तीक्ष्ण धार वाले चक्र से पृथ्वी पर मांस का ढेर लगा दे तो भी इसमें लेशमात्र भी पाप नहीं है। दान, धर्म, संयम, सत्यभाषण आदि से कुछ भी पुण्य नहीं होता। सूत्रकृतांग१५ में कहा गया है कि आत्मा स्वयं कोई क्रिया नहीं करता और न दूसरे से कराता है तथा आत्मा समस्त (कोई भी) क्रिया करने वाला नहीं है। इस प्रकार आत्मा अकारक है। यह सिद्धान्त कर्म-सिद्धान्त के प्रतिकूल है और पुण्य-पाप का समूल उच्छेद करने वाला है। अज्ञानवाद अज्ञानवादियों का कहना है कि अज्ञान ही श्रेयस्कर है। ज्ञानवादी ज्ञान के अहंकार के कारण उल्टे सीधे तर्क करने लगता है। ज्ञान होने पर व्यक्ति एक पर राग करेगा एक पर द्वेष। इसलिए 'सबते भले मूढ़ जिन्हें न व्याप जगत् गति'। बौद्ध पिटक में संजयवेलट्ठिपुत्त के मत को संशयवाद या अज्ञानवाद कहा गया है। जैनागमों में अज्ञानवादियों के सम्बन्ध में कहा गया है कि ये अज्ञानवादी तर्क कुशल होते हैं। संजय वेलट्ठिपुत्त से परलोक, देव, नारक, कर्म, निर्वाण आदि के पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इनके सम्बन्ध में विधि रूप, निषेधरूप, उभयरूप का अनुभयरूप कुछ भी निर्णय नहीं कहा जा सकता।१६ अर्थात् इसका कारण न है, न नहीं है, न है नहीं है।इनकी यह भी मान्यता है कि सभी वस्तुओं का ज्ञान सम्भव नहीं है। अत: अज्ञानवाद ही श्रेयष्कर है। प्रच्छन्न नियतिवाद ___बौद्ध पिटक में पकुधकच्चायन के वाद का उल्लेख है जिससे प्रच्छन्न नियतिवाद की ही प्रतीति होती है। इनके अनुसार सात पदार्थ/तत्त्व ऐसे हैं जिनका न तो निर्माण किया गया न कराया गया। ये सात तत्त्व हैं - पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, सुख, दु:ख और जीव। इनका नाश करने वाला, इनको सुनने वाला, जानने वाला कोई भी नहीं है। ये मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी तीक्ष्ण वस्तु से किसी के सर का भेदन करता है तो वह उसके जीवन का हरण नहीं करता बल्कि इन सात पदार्थों के अन्तरान्तल में उनका प्रवेश कराता है। पकुध का यह प्रच्छन्न नियतिवाद कर्मवाद का कट्टर विरोधी है। क्रियावाद यद्यपि क्रियावाद कर्मवाद का समर्थक है किन्तु यहाँ क्रियावाद का अर्थ साक्रियावाद है। 'ज्ञानाक्रियाभ्यां मोक्षः' - इस सूत्र के अनुसार वहाँ क्रियावाद सम्यकचारित्र एवं सम्यक्तप के आचरण मे रूढ़ है। किन्तु यहाँ क्रियावाद अज्ञानपूर्वक क्रिया तथा अन्धविश्वासपूर्वक प्रवृत्ति या अज्ञानपूर्वक तप करने के अर्थ में है। वर्तमान भौतिक विज्ञानवादी भी इस अन्तिम लक्ष्य विहीन क्रियावाद के अन्तर्गत आ जाते हैं। इसके For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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