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________________ पार्वाभ्युदय काव्य में अभिव्यंजित मेघदूत काव्य : ४९ चन्द्रमा के ऊपर लगाते हए श्वेतवर्ण फेनों से भौहों की टेढ़ी रचना कर मानो हँसकर अथवा गौरवर्ण की स्त्रियों के भ्रूभंग पर मानो हँसकर हिमवान् पर्वत के प्रपात पर गंगाकूट की निवासिनी देवी की प्रतिनिधि होकर अर्हन्त भगवान् त्रैलोक्याधिपति आदिदेव के केशों को पकड़ लिया (अर्थात् जिसने भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा के ऊपरी भागों में स्थित जटाजूटों को पकड़ लिया। उसी इस नदी को जानो अर्थात् इस नदी को उस गंगा महानदी के समान आदर दो।)११ मेघदूत में चर्मण्वती नदी को गौवों के मारने से उत्पन्न तथा पृथ्वी में प्रवाहरूप से परिणत रन्तिदेव की अकीर्ति कहा है।१२ पाश्र्वाभ्युदय में इन्हीं विशेषणों के साथ इन्हें रन्तिदेव की अकीर्तिस्वरूप कहा गया है।१३ । मेघदूत में किन्नरियों द्वारा त्रिपुर विजय के गीत गाने का उल्लेख है।१४ पार्वाभ्युदय में त्रिपुरविजय से तात्पर्य औदारिक, तैजस और कार्मण तीनों शरीरों के विजय का गीत है।१५ मेघदूत में गौरी शब्द का प्रयोग पार्वती के लिये किया गया है।१६ पाश्र्वाभ्युदय में यह गौरी स्त्री अथवा ईशान दिशा के स्वामी की पत्नी के अर्थ में व्यंजित हुआ है।१७ __ मेघदूत में मेघ से कहा गया है कि वह शिवजी के हाथ का सहारा देने पर चलने वाली पार्वती के पैदल चलने पर भीतर जल प्रवाह को रोककर अपने शरीर को सीढ़ियों के रूप में परिणत कर दे।१८ पार्वाभ्युदय में गौरी के स्थान पर देवभक्ति के कारण पूजा करने की इच्छुक जैन मन्दिर को आती हुई इन्द्राणी के लिए अपने शरीर को सीढ़ी रूप में परिवर्तित करने की मेघ से प्रार्थना की गई है।१९ कालिदास ने पूर्व मेघ के एक स्थल पर कहा है कि शिव चरणों में भक्ति रखने वाले करण विगम के अनन्तर शिव के गुणों का स्थिर पद प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।२० इस करणविगम शब्द का प्रयोग पाश्र्वाभ्युदय में करते हुए जिनसेन कहते हैंअर्हन्तभगवान् के चरणचिन्हों को देखने पर जिनके पाप नष्ट हो गये हैं ऐसे जन भक्ति का सेवन करने वाले करणविगम के अनन्तर सिद्ध क्षेत्र की स्थापना करते हैं।२१ निष्कर्षत: यह कहना सार्थक है कि जहाँ एक ओर महाकवि कालिदास के मेघदूत का मेघ यक्ष का संदेश प्रिया को पहुँचाने वाला परममित्र, मानव सदृश है, वहीं दूसरी ओर जिनसेन के पार्वाभ्युदय का मेघ सांसारिक बाह्य आकर्षण का प्रतीक है। इस आकर्षण से सभी सांसारिक प्राणी आकर्षित होते हैं। शम्बासुर चाहता है कि बाह्य आकर्षण में पड़कर पार्श्व अपनी तप साधना को भूल जाएँ अत: मेघ के माध्यम से समस्त सांसारिक आकर्षणों, सृष्टि की उमंगों, तरंगों, कोमल संवेदनाओं और अभिलाषाओं को सामने रखता है। उज्जयिनी और अलका की बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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