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________________ ई, ऐ, और स्वरों से संयुक्त र, ल, ष, एवं ड, ञा, ण, न और म - इन ग्यारह वर्णो की मूल संज्ञा है, यह जिनेन्द्र ने प्रकाशित किया है।।२७।। मुट्ठीजीवक्खरए मूलं जीवं वि मूलअक्खरए। धाउं उण जाणिज्जह धाउक्खरएण किं चोज्ज।। २८।। मुष्टि के प्रश्न में जीवाक्षरों से मूल, मूलाक्षरों से जीव और धात्वाक्षरों से धातु को जान लो-क्या आश्चर्य है।।२८॥ बहुपढमवग्गवण्णा अह बहुबिंदू विसग्गसंजुत्ता। बहुवन्ना जह पण्हे ता सुन्नं मुट्ठिचिंताई।।२९।। मुष्टि के प्रश्न में यदि बहुत से प्रथम वर्गीय वर्ण हों या बिन्दु एवं विसर्ग से युक्त बहुत से वर्ण हों तो मुष्टि की चिन्ता में शून्य होता है।।२९॥ विसमसरा ऊआरो वग्गाणं पठम-तइयवण्णाई। दुप्पय-णराण एवा एआहाराण णहु होइ।।३०।। विषम स्वर (प्रथम, तृतीय, पंचम, सप्तम, नवम एवं एकादश) तथा ऊकार एवं वर्गों के प्रथम और तृतीय वर्ण - ये द्विपद नरों के हैं, इन के भक्षक राक्षसों के नहीं है।॥३०॥ बीओ दसमो सरओ वग्गाणं बीयवण्णया सयला। दिसंति जइअ पण्हे ता मुणह चउप्पयं जीवं।।३१।। द्वितीय और दशम स्वर एवं वर्गों के सभी द्वितीय वर्ण प्रश्न में दिखाई देते हैं, तो चतुष्पद जीव जानों।।३१।। जड़ वग्गाण य वण्णा पंचमया हुंति पण्हपडियाइं। ता मुणह णरअवासिय भूअपिसाचई सव्वाइं।।३२।। यदि वर्गों के पंचम वर्ण प्रश्न में पड़े हों तो सभी नरकवासी और भूत-पिशाच जानो॥३२॥ मत्ता त-पवग्गेहिं य-शवग्गेहिं हंति सउणा या सिद्धा सरहिं भणिया देवा उण क-च-टवग्गेहि।।३३।। तवर्ग और पवर्ग से मर्त्य, यवर्ग और शवर्ग से शकुन (पक्षी) स्वरों से सिद्ध एवं कवर्ग, चवर्ग तथा टवर्ग से देवता कहे गये हैं।।३३।। चवइ कवग्गो पण्हे लद्धो थलचारियं विहंगमयं। तं चिअ अइप्पहाणं तवल्गओ णत्यि संदेहो।।३४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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