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________________ हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार माता-पिता द्वारा अनुज्ञात धनदेव जिन मंदिर में अड्डाई महोत्सव करवाकर, साधुभगवंतों की पूजा करके, माननीय पुरुषों को सम्मानित करके, उस संपूर्ण नगर में लोगों के इकट्ठे होने पर उद्घोषणा करवाकर किये हुए मङ्गलोपचारवाला, श्रेष्ठ शकुन को ग्रहण करके, हितकारी बन्धु-वणिग् के साथ ज्योतिषी द्वारा कहे गए शुभ दिन आने पर परदेश जाने योग्य चार भाण्ड (भाजन) लेकर स्व नगर से कुशाग्र नगर की ओर प्रयाण किया। गाहा : एवं सो धणदेवो संवाहिय-सह-पयट्ट-जण-नियरो । लहु-लहु पयाणएहिं वच्चइ सह गरुय-सत्येण ।।२४०।। छाया: एवं स धनदेवः संवाहित-सह प्रवृत्तजननिकरः । लाघु-लघु प्रयाणकः बजति सह गुरु-सार्थेन ।।२४०॥ अर्थ :- आ रीते बोलावेला बधा जनसमुदाय सहित ते धनदेव मोटा सार्थनी साथे नाना-नाना प्रयाण करवा वड़े आगळ जवा लाग्यो। हिन्दी अनुवाद :- इस तरह बुलाये हुए सभी जनसमुदाय सहित वह धनदेव बड़े सार्थ के साथ छोटे-छोटे प्रयाण द्वारा आगे जाने लगा। गाहा : सार्थनो अटवीमा प्रवेश तत्तोऽणुवासरं सो सत्थो वसिमं अइक्कमेऊण । अह कमसो संपत्तो एक्कं अइभीसणं अडविं ।।२४१।। छाया: ततोऽनुवासरं स सार्थो वसतिमतिकम्य । अथ कमराः संप्राप्त एकामतिभीषणामटवीम् ॥२४१॥ अर्थ :- आ बाजु प्रतिदिन आगळ वधतां ते सार्थ वसतीने ओळंगीने क्रमथी भयंकर जंगलमां आव्यो... हिन्दी अनुवाद :- इस तरह प्रतिदिन आगे बढ़ता वह सार्थ बस्ती को लांघकर क्रम से भयंकर अटवी में आया। गाहा: जत्थ अदीसंताणवि घण-पत्तल-पउर-पायवत्तणओ। कूड़य-सर-संसवणा गम्मइ विहगाण अत्थितं ॥२४२।। छाया: या अदृश्यमानामपि एन-पत्रल-प्रचर-पादपत्वतः । कृजित-स्वर-संभवणात् गम्यते वितगानां अस्तित्वम्।।२४२॥ अर्थ :- ज्यां गाढ पांदडाओनी प्रचुरतावाला वृक्षो होवाथी पक्षिोनु अस्तित्व नही देखातां छतां पण तेमना कूजन अने स्वरना श्रवणधी जणाय छे। हिन्दी अनुवाद :- जहाँ धन पर्गों की प्रचुरता युक्त वृक्ष होने से पक्षियों का अस्तित्व दिखाई न देने पर भी उनके कूजन और स्वर के श्रवण से ज्ञात होता था। 70 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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