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________________ छाया : तथापि खलु कथयागि हे सुन्दर ! मा वचनं तव निष्फलं यातु । सिंहगुफा नाग्ना अतिविषमा अस्ति पल्लीति ॥ १९० ॥ अर्थ :- हे सुन्दर ! तो पण हुं तने मारू दुःख कहुं छु, केमके तारू वचन निष्फळ of थबु जोइए। ते सांभलो ! सिंह गुफा नागनी अत्यंत भयंकर, पल्ली छे । हिन्दी अनुवाद :- हे सुन्दर ! फिर भी मैं तुझे अपना दुःख कहता हूँ, क्योंकि तेरा वचन निष्फल नहीं होना चाहिए, अतः सुनिये ! सिंह गुफा नाम की अत्यंत भयंकर पल्ली है। गाहा : तीए य सुपइट्ठो पल्लि वई तस्स तीए पुत्तो जाओ जयसेणो छाया : छाया : तस्याश्व सुप्रतिष्ठः पल्लीपतिः तस्य भार्यालक्ष्मीः । तस्याः पुत्रो जातो जयसेनो जन-मन-आनन्दः ॥१९१॥ अर्थ :- ते पल्लीनो सुप्रतिष्ठ पल्लिपति तथा तेनी पत्नी लक्ष्मी अने लोकना मनने आनंद करनार जयसेन नामनो पुत्र थयो । हिन्दी अनुवाद :- उस पल्ली का सुप्रतिष्ठ नाम का पल्लिपति तथा उसकी लक्ष्मी नाम की पत्नी और लोगों के मन को आनंद देनेवाला जयसेन नाम का पुत्र था। • देवशर्मा द्वारा जयसेनने क्रीडा कराववी तस्स य बाल-ग्गाहो अहयं नामेण देवसम्मोति । कीलामिय जयसेणं तत्थ अहं विविह-कीलाहिं ।।१९२।। गाहा : तस्य च बालग्राहोऽहं नाम्ना देवशर्मेति । क्रीडयामि च जयसेनं तत्राहं विविध क्रीडाभिः ॥१९२॥ अर्थ :- ते जयसेन कुमारने साचवनार नाम वड़े 'देवशर्मा' ए प्रमाणे हुं वे जयसेनने विविध क्रीडाओ वडे रमाडुं छु। हिन्दी अनुवाद :- उस जयसेन कुमार की सार संभाल करनेवाला मैं 'देवशर्मा' उस जयसेन को विविध कीड़ाओं से क्रीड़ा कराता हूँ। गाहा : छाया : भारिया लच्छी । जण मणाणंदो ।।१९१ ।। अह अन्नया य बाहिं विणिग्गओ गेण्हिऊण जयसेणं । पुरिसेहिं दोहि दिट्ठो तत्थ अहं जोगि -रूवेहिं ।।१९३।। अथान्यदा च बहिर्विनिर्गतो गृहीत्वा जयसेनं । पुरुषाभ्यां द्वाभ्यां दृष्टः तत्राहम् योग-रूपाभ्याम् ॥१९३ ॥ 31ef :हवे कोइक वार जयसेनने लइने बहार गयो त्यां योगी रूपवाळा पुरुषो बड़े हुं जोवायो । Jain Education International 56 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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