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________________ का पालन करते हुए सुख के समुदाय में मग्न देवलोक में देवों के इन्द्र की तरह कभी भी दुःख का अनुभव नहीं करते हुए उस राजा के दिन बीतने लगे। गाहा : धनधर्म श्रेष्ठीनुं वर्णन तम्मि य पुरे पसिद्धो पबरो पउराण आसि धणधम्मो । सेट्ठी निवस्स इट्ठो पत्तट्ठो सव्व-सत्थेसु ।।१७३।। छाया: तस्मिंश्च पुरे प्रसिद्धः प्रवरः पौराणामासीत धनधर्मः । श्रेष्ठी नृपस्येष्टः प्राप्तार्थः सर्व-शास्त्रेषु ।।१७२।। गाहा : नीसेस-अस्थि-वित्थर-पत्थिय-अभिहिय-दिन-वरदाणं । अज्जय-पज्जय जणयज्जियाए लच्छीएऽलंकरिओ ।।१७४।। छाया:... निःशेषार्थि-विस्तार-प्रार्थिताभ्यधिकदत्तवरदानः । 'आर्यक-'प्रार्यको जनकार्जितया लक्ष्म्या अलंकृतः ॥१७४।। गाहा : जिण-समय-सत्थ वित्थर-वियक्खणो मोक्ख-मग्ग तल्लिच्छो । जिण-साहु-पूयण-रओ साहम्मिय-वच्छलो धणियं ।।१७५।। छाया: जिन-समय-शास्त्रविस्तार-विचक्षणो मोक्षमार्ग-तल्लिप्सः। जिनसाधु-पूजनरतः साधर्मिकवात्सलः 'अत्यन्तम् ।।१७५॥ अर्थ :- ते नगरमां प्रसिद्ध, लोकोमा श्रेष्ठ, राजाने इष्ट, सर्व शास्त्रोमां प्राप्तरहस्यार्थवाळो, सर्व याचकोनां समुदायने याचना करता पण वधारे आप्यु छे श्रेष्ठ दान जेणे तथा दादा, वडदादा अने पिताजीए भेगी करेली लक्ष्मीथी शोभतो, जिनेश्वर भगवंतना शास्त्रनां विस्तारने जाणवामां विचक्षण, मोक्षमार्गली. इच्छावाळो, जिनेश्वर भगवंत तथा साधु भगवंतनी पूजामां तत्पर, साधर्मिकं भक्तिमां गाढ प्रेमवाळो धनधर्म नामना शेड रहेता हता। हिन्दी अनुवाद :- उस नगर में प्रसिद्ध, लोकों में श्रेष्ठ, राजा को इष्ट, सर्व शास्त्रों के रहस्यार्थ को जानने वाला, सर्व याचक वर्ग को इच्छित से भी अधिक दान देनेवाला तथा दादा-परदादा और पिताजी द्वारा अर्जित लक्ष्मी से शोभायमान, जिनेश्वर परमात्मा के शास्त्र के विस्तृत रहस्य में विचक्षण, मोक्षमार्ग की इच्छावाला, जिनेश्वर भगवंत तथा साधु भगवंत की पूजा में तत्पर, साधर्मिक भक्ति में गाढ़ प्रीतिवाला धनधर्म नामका सेठ रहता था। गाहा : श्रेष्ठी पत्नी मनोरमानुं वर्णन अवहसिय-तियस-सुंदरी-रूवाइसया पई-वया दक्खा । भज्जा मणोरम-नामा तस्स य पाण-प्पिया धणियं ।।१७६॥ १. १-६ णियं-दे-१७५-१७६ २. आर्यक=पितामह = प्रार्पकः = प्रपितामह धणियं देश्य = गाढं - - 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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