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________________ छाया : रे ! रे ! कोऽपि हि 'पापोऽभिगरं रूपेणागत एषः । कार्मणकारी येनेह विमोहितोऽस्माकं स्वामीति ॥ ९८ ॥ अर्थ :- रे ! रे ! कोई पापी मरणना भयथी रहित अथवा पैसाना लोभथी अहीयां आ आवेळो छे । के जेथी कामणद्वारा आमारा स्वामी मूर्च्छित कराया छे । हिन्दी अनुवाद :- रे ! रे ! कोई पापी मरणान्त भय से निर्भय अथवा पैसे के लोभ से यहाँ आया लगता है कि जिसके कार्मण से मन्त्रित अपने स्वामी मूर्च्छित हुए हैं। गाहा : चित्रकार प्रति लोकोनो आवेश तालेह हणह बंधह एवं गहिओ सो हम्मंतो एवं छाया : ताडयत, हत, बन्धत, एवं भणद्भिरङ्गरक्षकैः । भणितुं समारब्धः ॥९९॥ गृहीतः स हन्यमान एवं अर्थ :- “एने मारो पीटो, बांधो” आम बोलतां अंग-रक्षको द्वारा ते ग्रहण करायो अने मरातो ते आ प्रमाणे कहेवा लाग्यो ! हिन्दी अनुवाद :• इसको मारो, पीटो, बांधो, इस प्रकार अंग-रक्षकों के कटुवचन और मार सहन करता हुआ वह इस प्रकार कहने लगा। गाहा : छाया : भणतेहिं भणिउं भो ! भो ! भद्दा ! नाहं दुट्ठो ता मा मुहा कयत्थेह । तत्तो य तेहिं भणियं कहं न दुट्ठो तुमं पाव ॥१००॥ छाया : भो ! भो ! भद्रा ! नाहं दुष्टस्तस्मात् मा मुधा कदर्थयत । ततश्च तैर्भणितं कथं न दुष्टस्त्वं पाप ! ? ||१००॥ अर्थ :- हे ! हे ! भद्र पुरुषो हुं दुष्ट नथी तेथी मारी फोगट कदर्थना न करो। व्यारे रक्षकोए कहयु- "हे पापी तुं दुष्ट केवी रीते नथी ?” हिन्दी अनुवाद :- "हे ! हे ! भद्र पुरुषलोग ! मैं कोई दुष्ट आदमी नहीं हूँ अतः आप मुझे ऐसी पीड़ा मत दो", तब रक्षकों ने कहा- "हे पापी तू कैसे दुष्ट नहीं है ?" गाहा : अंगरक्खेहिं । समाढत्तो ।। ९९ ।। कम्मण कयं हि चित्तं पयंसियं कीस राइणो तुमए ? । तह मुच्छियम्मि देवे वियसिय-वयणो य किं जाओ ? ।। १०१ ।। १. अभिमरः कार्मणकृतं हि चित्रं प्रदर्शितं कस्मात् राज्ञस्त्वया ? | तथा मूर्च्छिते देवे विकसित वदनश्च किं धनादि लोभतो मरणभयरहितं साहस कर्मकारी. = Jain Education International 30 For Private & Personal Use Only जातः ॥१०१॥ www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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