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________________ हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार चिंतन करता वह राजा कामदेव के बाणों में विषयासक्त बना और चित्र में आकृष्ट चित्तवाला स्वयं को भूल गया। गाहा :- चित्रदर्शनथी राजानी मूर्छा तत्तो खणंतराओ संमीलिय-लोयणो अमरकेऊ । सीहासणाउ पडिओ मुच्छाए परवसो सहसा ।।९५।। छाया: ततः क्षणान्तरात् सम्मीलित-लोचनोऽमरकेतुः । सिंहासनात् पतितो मुर्छया परवशः सहसा ।।९५॥ अर्थ :- त्यारपछी क्षणवारमा मींचायेली आंखवाळो अमरकेतु राजा सिंहासनथी नीचे पडयो अने तरत ज मूर्छित थयो। हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् अल्प क्षणों में बंद आँखवाला अमरकेतु राजा सिंहासन से नीचे गिरा और तुरंत ही मूर्छित हुआ। गाहा: मूर्छा दूरीकरण उपाय हा! हा! हत्ति भणंता अत्थाण-गया समुट्ठिया लोया । वीयंति वीयणेहिं सीयल-सलिलेण सिंचंति ।।९६।। छाया : हा ! हा! हा! इति भणन्त आस्थानगताः समुत्थिता लोकाः। वीजयन्ति व्यजनैः शीतल सलिलेन सिञ्चन्ति ॥१६॥ अर्थ :- हा ! हा ! हा ! ए प्रमाणे बोलतां सभामा रहेलां लोको उभा थया अने ठंडा पाणी वडे सिंचवा लाग्या तथा पंखा वडे हवा नाखवा लाग्या। हिन्दी अनुवाद :- "हा ! हा ! हा!" इस प्रकार बोलते, सभा में विराजित लोग खड़े हुए और डंडे पानी का छिड़काव करते हुए पंखे से हवा करने लगे। गाहा : वयणे खिवंति खिप्पं कप्परं तह मलेंति अंगाई। तं दटुं चित्तसेणो पहसिय-वयणो दढं जाओ ।।९७।। छाया :. वदने क्षिपन्ति क्षिप्रं कर्पूरं तथा मर्दयन्ति अङ्गानि । तद् दृष्टवा चित्रसेनः प्रहसित-वदनो दृढं जातः ॥९॥ अर्थ :- मोढामां जल्दी कपूर नाखवा लाग्या तथा अंगोनु मर्दन करवा लाग्या ते जोड़ने चित्रकार चित्रसेन हर्षित मुखवाळो स्तब्ध थयो। हिन्दी अनुवाद :- शीघ्र ही मुख में कपूर डालने लगे तथा अंगों का मर्दन करने लगे यह सब देखकर चित्रकार चित्रसेन हर्षित मुखवाला स्तब्ध हुआ। गाहा : रे ! रे ! कोवि ह पावो अहिमर-रूवेण आगओ एसो । कम्मणगारी जेणिह विमोहिओ अम्ह सामित्ति ।।९८॥ 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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