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________________ हिन्दी अनुवाद :- जिस नगर में पाद प्रहार मात्र नाट्य गृह में दिखाई देता था। दण्ड तो मात्र मंदिर के ध्वज पट्ट में ही दिखता था और मस्तक का उच्छेद मात्र जुवारी का ही होता था। (अर्थात् नगर के लोग इतने शान्त थे कि कोई भी जन मारामारी-लूटपाट कुछ भी करते नहीं थे जिससे उनको दण्ड देना पड़े या उनका वध करना पड़े। गाहा : 'कुसुमाण सिरसि बंधो साग-च्छेत्तेसु जीव-कत्तणया । तह पंडिय-परिसासु पत्ताणं हंदि! भिंदणया ।।७२।। छाया : कुसुमानां शिरसि बन्धः शाकक्षेत्रेषु जीवकर्तनता । तथा पण्डितपरिषत्सु प्राप्तानां हन्त ! भेदनता ।।७२॥ अर्थ :- फूलोनो बंधन मात्र मस्तकमां ज हतो, जीवोने कापवानुं मात्र शाकनां खेतरमांथतु हतु, तथा पंडितोनी पर्षदामां ज कागळोनुं भेदन थतु हतु। (अर्थात् नागरीकोने कोइ पण बंधनमां नाखवा पड़ता न हता। अने कोईने सूली ऊपर चडाववा पडता नहि, तथा तलवारथी कोइनो भेद पण थतो न हतो) हिन्दी अनुवाद :- फूलों का बंधन मात्र मस्तक में ही था, जीवों को काटने का मात्र सब्जी के खेत में ही था तथा पण्डितों की पर्षदा में ही कागज का भेद था। - (अर्थात् नागरिकों को किसी भी प्रकार का बंधन, शूली-रोपण और उन पर तलवार का भेद नहीं होता था।) गाहा : अह एक्को च्चिय दोसो गुणाण भवणम्मि तम्मि नयरम्मि । निद्दोस-साहुणो जं सयावि दीसंति गुत्ति-ठिया ।।७३।। छाया : अथ एक एव दोषो गुणानां भवने तस्मिन्नगरे । __ निर्दोषसाधवो यत् सदापि दृश्यन्ते गुप्ति-स्थिताः ॥७३॥ अर्थ :- गुणोना भवनरूप ते नगरमां एक ज दोष हतो जे निर्दोष एवा साधुओ पण हम्मेशा जेलमां देखातां हता। (अहीं निर्दोषसाधुओ अने जेलमा रहेवु ते विरोध सूचक छे। गुप्तिमन-वचन-कायानी गुप्तिथी गुप्त रहेवु। अर्थात् आ नगरमां बधा साधु भगवंतो गुप्तिना पालनमा लागेला हता)। विरोधालंकार छ । हिन्दी अनुवाद :- गुणों के भवन तुल्य नगर में एक ही दोष था कि यहां निर्दोष साधु-महात्मा भी सदैव जेल (गुप्ति) में दृष्टिगोचर होते थे। (यहाँ निर्दोषसाधुपुरुष और जेल में रहना वह विरोध सूचक है। गुप्तिमन-वचन-काया की गुप्ति से गुप्त रहना अर्थात् इस नगर में सभी साधुभगवंत गुप्ति के पालन में लीन थे)। विरोधाभास अलंकार है। गाहा : पांच श्लोक बड़े राजानुं वर्णन अह तस्मि पुरम्मि पहू पभूय करि तुरय रयण भंडारो । जह भणिय नीइ-पालण-आणंदिय-सयल-जण चित्तो ।।७४।। 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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