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________________ हिन्दी अनुवाद :- उस नगर के मनुष्य गृह की दीवालों में जड़ित मणियों की किरणों से सदैव अंधकार नाश होने से रात्रि को भी जानते नहीं थे । ( अर्थात् अभी तिजोरी में भी रत्न सुरक्षित नहीं हैं, तब उस समय लोग दीवाल में भी निर्भयता से ऐसे कीमती रत्न अंकित करते थे। (राम-राज्य था ) गाहा :नगरनी रमणीयता य पलोयणत्थंव आगया अणमिस-नयणत्तणं रम्मत्तणओ जस्स कोउगवक्खित्त-मणा छाया : रम्यक्त्वतो यस्य च प्रलोकनार्थमिवागता देवाः । कौतुक - व्याक्षिप्तमनसोऽनिमेषनयनत्वं प्राप्ताः ॥ ६९ ॥ अर्थ ते नगर एवु मनोहर हत्तु के, नगरनी मनोहरता जोवा माटे ज जाणे "देवो आव्या न होय तेम कौतुकथी खेंचायेला मनवाळा ते देवो अनिमेष नयनपणाने पाम्या । (अहीं अतिशयोक्ति अलंकार छे)। हिन्दी अनुवाद :- वह नगर इतना मनोहर था कि नगर की मनोहरता को देखने के लिए ही आकृष्ट चित्तवाले देवलोक के देव भी अनिमेष नयनत्व को प्राप्त हुए (पाये) । नगरनी शोभारूप धजा वर्णन गाहा : धवल - हर सिहर - विरइय-पवण- पहल्लंत - वेजयंतीओ सन्नंति व 1 रविणो सारहिस्स अइउच्च-गमणट्ठा ।।७० ।। नगरनी विशिष्टतानुं वर्णन धवलगृह - शिखर - विरचितपवन-घूण्यमानवैजयन्त्यः | संज्ञान्तीव रवेः सारथेरत्युच्च - गमनार्थाः ॥७०॥ अर्थ :- सफेद घरनां शिखरी उपर रहेली पवनथी उडती धजाओ जाणे सूर्यना सारथिने उपर आववा माटे इशारो न करती होय एवु लागे छे । ( अर्थात् घटनां शिखरो सूर्य-चन्द्रने आंबी गया होय तेवा विशाळ हता)। हिन्दी अनुवाद :- श्वेत घर के शिखरों पर पवन से हिलती ध्वजाएँ भी मानो सूर्य के सारथी को ऊपर आने के लिए इशारा करती हों ऐसा लगता है । (अर्थात् गृह के शिखरें सूर्य-चन्द्र को छू गए हों इतने विशाल थे) । गाहा : छाया : देवा । पत्ता ।।६९। जत्थ य पुरम्मि दीसइ पाय-पहारो उ दंडो उ धय-वडाणं सीस-च्छेओ छाया : Jain Education International पाद- प्रहारस्तु शीर्षच्छेदो रङ्गभूमिषु । 'जुयारीणाम् ॥ ७१ ॥ यत्र च पुरे दृश्यते दण्डस्तु ध्वज-पटानां अर्थ :- जे नगरमां पाद प्रहार (पग वड़े मार) मात्र नाट्य गृहमां देखातो हतो। दंड तो मात्र मंदिरना ध्वज पट्टोमां ज देखाता हता। अने मस्तकनो छेद मात्र जुवारनो थतो हतो । ( अर्थात् नगरना लोको एटला बधा शांत हता के कोई मारामारी - गुनाखोरी करता न हता के जेथी तेमने दंड के वध करवो पड़े। १. जुयारी: - धान्यविशेष - ज्वार इति भाषायाम् । 21 For Private & Personal Use Only रंगभूमीसु । जुयारीण' ।। ७१ ।। www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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