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________________ गाहा :- अविय। अणवरय-वहताणेय-वणिय-सत्थोह'-वसिम-सयल-पहो । जत्थ न नज्जइ पहि पहिं अडवि-वसि-ठाणय-विसेसो ।।५२।। छाया :- अपि च 'अनवरतवतदनेकवणिक्सार्थवाहवसतिमत्-सकलपथः । यत्र न ज्ञायते पथि पथ्यटवि- वसति-स्थानकविशेषः ॥५२॥ अर्थ :- अने वळी जता आवता अनेक वेपारी सार्थवाहनां समूहथी वासित संपूर्ण मार्गवाळो-ज्यां दरेक मार्गमां जंगल अने वसतिनां स्थाननो भेद नथी जणातो (तेवो देश हतो) हिन्दी अनुवाद :- आते-जाते अनेक व्यापारी सार्थवाह के समूह से युक्त सम्पूर्ण मार्ग जहाँ हैं और जहाँ मार्ग में जंगल और वसति के स्थान का भेद नहीं है (वैसा वह देश था)। गाहा : लोको विशाल हृदयवाला अन्नं च तम्मि देसे गुणाण भवणम्मि एयमच्छरियं । सोअ-रहिओवि जं सुणइ जणवओ लोय-भणियाइं ।।५३।। छाया : अन्यच्च तस्मिन् देशे गुणानां भवन एतदाश्चर्यम् । (श्रोत्र) शोकरहितोऽपि यत् शृणोति जनपदो लोकभणितानि||५३|| अर्थ :- अने वळी बीजु ते देशमां गुणोना (स्थानमा) भवनमा आ आश्चर्य हतु। के बहेरोपण (कानरहित) एवो देश अर्थात् देशनां लोको, लोकनुं बोलेलु सांभळता हता। बहेरो केम सांभळे ? अही विरोधाभास अलंकार छ। सोअ रहिओ शोकरहित एवो अर्थ करीने कर्यो छे। केमके दुःखियारो होय ते लोकोनी वातो सांभळे, पण आ गाममा तो शोकरहित अर्थात् दुःखरहित पण ते मानव लोकोनी वातोने सांभळतो हतो। हिन्दी अनुवाद :- और फिर इस देश में गुणों के स्थान में एक आश्चर्य था कि बहरा (कान रहित) भी देश के लोगों का कहा हुआ सुनते थे। बधिर कैसे सुनता? यहाँ विरोधाभोस अलंकार है। सोअ रहिओ-शोकरहित ऐसा अर्थ करना। क्योंकि दुःखी लोग लोगों की बात सुनते हैं, किन्तु इस गाँव में तो सुखी मानव भी लोगों की बात सुनता था। गाहा :- अविय। जत्थ य गाम-महल्ला कर-रहिया धम्म-वज्जिया मुणिणो । देसस्स तस्स संवण्णणम्मि को उज्जमं कुणइ ? ||५४।। १. सत्योह-सार्थवाह सम्प्रसारणना नियमथी वाह नो उह थयो छ। अने सत्थ उह नी सन्धि थवाथी सत्थोह थयो छ। ८।१।८८ सूत्र नहिं लागवाथी संस्कृतवत् कर्यो छे। २. वसिम-दे - - 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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