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________________ अर्थ :- ते जंबुद्वीपना दक्षिण भागमां वैताढ्य नामना श्रेष्ठ पर्वत बड़े बे प्रकारे विभाग पामेलु, सारा विस्तारवारों भरत नामे श्रेष्ठ क्षेत्र छे। हिन्दी अनुवाद :- उस जम्बुद्वीप के दक्षिण भाग में वैताढ्य नाम के श्रेष्ठ पर्वत से दो प्रकार से विभाजित सुन्दर विस्तारवाला भरत नाम का श्रेष्ठ क्षेत्र है। गाहा : कुरुदेश वर्णन अह दाहिणढ-भरहे गंगा-सिंधूण मज्झयारम्मि । कप्प-दुमोव्व दुमाणं बहु-देसाणं पहाणयरो ।।४८।। धन-समिद्धिल-पामर-रासय-संसह-पूरिय-दियंतो अवि-करह-मसिह-रासह-नाणाविह-गोहणाइन्नो ॥४९।। पइदियह-वहंताणेय-सारणी-विसर-रेहिरुज्जाणो पुर-नगर-गाम-पउरो बह-रिद्धि-समिद्ध-सयल-जणो ।।५।। निच्चं पमुइय-लोओ नाणाविह-उच्छवेहिं अविरहिओ। भय-डमर-रहिय-गामो कुरुत्ति नामेण वर-देसो ।।५।। छाया: अथ दक्षिणार्धभरते गंगासिंधोर्मध्ये । कल्पद्रुम इव द्रुमाणां बहुदेशानां प्रधानतरः ॥४८॥ धान्य-समृद्धिवत्-पामर-रासक-संशब्दपूरितदिगन्तः । अवि-करभ-महिष-रासभ-नानाविधगोधनाकीर्णः ॥४९।। प्रतिदिवसवहदनेकसारणी-विसर-शोभाशीलोद्यानः । पुर-नगर-ग्रामप्रचुरो बहु-ऋद्धि-समृद्धिसकलजनः ॥५०॥ नित्यं प्रमुदितलोको नानाविधोत्सवैरविरहितः । भय-डमर-रहितग्रामः "कुरु" इति नाम्ना वरदेशः ॥५१॥ -चतसृभिः कलापळग अर्थ :- हवे दक्षिणार्द्ध भरतमां गंगा-सिंधुनी मध्यमां वृक्षोमां कल्पवृक्षनी जेम अनेक देशोमा प्रधान...धान्यथी समृद्ध,खेडूत अने रासना शब्दोथी पूरायेला दिशाओना अंत छे जेमा...वळी बकरा, ऊंट, भेंस, गधेड़ा तथा विविध प्रकारनां गोधनथी व्याप्त...दररोज वहेती अनेक नदीओ तथा नहेरोथी शोभित उद्यानवाळो...पुर नगर-ग्रामथी प्रचूर तथा अनेक प्रकारनी ऋद्धिथी समृद्ध, समस्त लोकथी युक्त...हमेशा आनंदित लोकयुक्त, निरंतर विविध प्रकारना उत्सवोथी व्याप्त, भय-उपद्रवथी रहित गामो जेमा छे तेवो नामवड़े कुरु नामनो श्रेष्ठ देश छ। हिन्दी अनुवाद :- अब दक्षिणार्द्ध भरत में गंगा-सिंधु के मध्य में, वृक्षों में कल्पवृक्ष की तरह अनेक देशों में श्रेष्ठ, धान्य से समृद्ध, कृषिबल और रास के शब्दों से दिशायें जिसमें व्याप्त हैं..... और बकरे, ऊंट, भैंस, गदहे तथा विविध प्रकार के गोधन से व्याप्त..... हर रोज बहती अनेक नदियाँ तथा नहरों से शोभित उद्यान-सहित..... पुर-नगर-ग्राम से प्रचुर तथा अनेक प्रकार की ऋद्धि से समृद्ध, जनसंकुल युक्त तथा प्रतिदिन आनन्दित लोकयुक्त, सदैव विविध प्रकार के उत्सवों से व्याप्त, भय-उपद्रव से रहित समस्त गांवों में श्रेष्ठ कुरु नाम का देश है। 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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