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हिन्दी अनुवाद :- शुभ श्रामण्य को स्वीकार करने की प्रतिज्ञा के समय में प्रारम्भ किया है लोच कर्म वैसे श्री ऋषभदेव भगवान की (जिनके बाल) इन्द्र के वचन से धारण किये हुए, अपने को स्थिर होने के लिए प्रार्थना करने आये हुए और चित्त के अंदर जिनका प्रवेश रोका गया है और ऐसा लगता है कि जैसे वह कामदेव का दूत हो वैसे उनके धुंघराले बाल का समूह उनके कानों के पास शोभा दे रहा है। (भगवान् ऋषभदेव ने इन्द्र की विनती से चतुर्मुष्टि लोच किया था, पाँचवीं मुष्टि वैसे ही रहने दी थी।) (अथवा)
जिन ऋषभदेव भगवान् के दोनों कंधों पर अच्छी तरह से लटकता हुआ बालों का समूह, खुले-पीले रंग के और शिखर के ऊपर काले धुंए वाली दीपशिखा की तरह शोभा देता है एवं प्रचुर विघ्नों का समूह भी जिनको प्रणाम करने से नष्ट होता है वैसे ऋषभदेव प्रभु के चरणकमलों को मैं प्रयत्नपूर्वक सर्वप्रथम नमस्कार करता हूँ। गाहा:
अजितादि तीर्थंकरोने वंदना अजियाइणो जिणिंदे वंदे जम्मम्मि जेसिममरिंदा ।
रागाइणो वि सत्तू पंचत्तं पाविया समयं ।।५।। छाया:
अजितादीन् जिनेन्द्रान् वन्दे जन्मनि येषाममरेन्द्राः ।
रागादयोऽपि शत्रवः पञ्चत्वं प्राप्ताः समकम् ॥५॥ अर्थ :- जेमना जन्म समये (अमरिंदा नहिं मरनारा) रागादि शत्रुओं पण एकी साथे नाशे पाम्या तथा अमरेन्द्रोपांचरूपपणाने पाम्या ते अजितनाथआदि जिनेश्वरोने हुं बंदन करूं छु।
अने पंचसं = पांचरूपपणु अनेनाश-बे अर्थ थाय छे। हिन्दी अनुवाद :- जिनके जन्मसमय पर कभी नहीं मरनेवाले वैसे रागादि सारे शत्रु एक साथ में नष्ट हुए तथा अमरेन्द्रने पांच रूप बनाये, वे अजितनाथ आदि जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूँ। (यहाँ अमरीदा - नहीं मरनेवाले) और (पंचत्तं= पांच रूप और नाश दो अर्थ ग्रहण किये हैं) यहाँ श्लेष अलंकार है। गाहा :
वीरपरमात्माने बंदना... जम्मण-समयाणंतर-सुमेरु-सिहराभिसेय-समयम्मि । सक्किंदण-कय-कुवियप्प-नासणे कय-पयत्तस्स ।।६।। रागाइ सइरि-सेणव्व जस्स दुटुं अणन-सामत्थं ।। थरहरिया अच्चत्थं ससिलोच्चय-सायरा वसुहा ।।७।। निम्पल-कम-नह-नियरो पडिबिंबिय-पणय-तिहुअणो जस्स । उव्वहइ जाय-गव्वो केवलनाणस्स समसीसिं ।।८।। जस्स य पणाम-मेत्ता निम्मल-कम-णक्ख-पडिय-पडिबिम्बा । एक्कारस-गुणमुवलब्भ अप्पयं हरिसिया तियसा ।।९।। तं वंदे जिण-यंदं देविंद-नरिंद-विंद-वंदिययं । सिद्धत्थ-नरिंद-सुअं चरिमं चरिमं गई पत्तं ॥१०॥
-पंचभिः कुलकम्
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