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श्रीमद्धनेश्वरमुनीश्वरविरचितं
सुरसुंदरीचरिअं
गाहा :
सुह-सामन-पइन्ना-समय-समारद्ध-लोय-कम्मस्स अमरवइ-वयण-धरिओ परिकुडिलो कुंतल-कलावो ॥१॥ कनासन्ने सोहइ जस्स अवस्थाण-पत्थणत्थंव । चित्तब्भंतर-रुद्ध-प्पवेस-कंदप्प-दूउव्व
॥२॥ अहवा सोहइ जस्स सुसंगय-उभयंस-लुलंत-कुंतल-कलावा । मुत्ती सुवन-वना सकज्जलग्गव्व दीव-सिहा ॥३॥ जस्स पणामा पावइ पलयं पउरोवि विग्घ-संघाओ। तस्स रिसहस्स पढमें नमामि पय-पंकयं पयओ ।।४।।
-चतसभिः कलापकम् संस्कृत छाया:
शुभ-श्रामण्य-प्रतिज्ञा-समय-समारब्ध-लोचकर्मणः । अमरपति-वचनधृतः परिकुटिलः कुंतलकलापः ॥१॥ कर्णासले शोभते यस्यावस्थान-प्रार्थमार्थमिव । चित्ताभ्यंतर-रुद्ध-प्रवेश-कन्दर्पत
इव ॥२॥ अथवा शोभते यस्य सुसंगतोभयांस-लुलत्कुंतलकलापा । मुक्ता सुवर्ण-वर्णा सकज्जलागा हव दीपशिखा ॥३॥ यस्य प्रणामात्प्राप्नोति, प्रलयं प्रचुरोऽपि विघ्नसंघातः ।
तस्य ऋषभस्य प्रथमं नमामि पदपंकजं प्रयतः ||४|| गुजराती अर्थ :- (श्री ऋषभदेवना बालनी शोभा अने चरण-कमलने नमस्कार )
शुभश्रामण्यने स्वीकारवानी प्रतिज्ञा वखते शरूकटेला लोचकर्मवाळा श्री ऋषभदेव भगवान् (के जेमना बाल) इन्द्रना वचनधी धारण करायेला, पोताने स्थिर थवा माटेनी प्रार्थना माटे आवेला अने चित्तनी अंदर रोकायेला प्रवेशवाला (अने प्रभु ऋषभदेवे इन्द्रनी विनंतीथी ४ मुष्टी ज लोच को हतो पांचमी रहेवा दीधी) जाणे कामदेवना दूत न होय तेवा वाकळीया वाळनो समूह काननी पासे शोभे छ। (अथवा)
जे ऋषभदेव भगवानना सारी रीते रहेला बंने खभा उपर लटकता बाळनो समुह छूटी, पीळा रंगनी अने टोच ऊपर काळा धूमाडावाळी दीप शिखानी जेम शोभे छ।
घणा विघ्नना समूहो पण जेमने प्रणाम करवाथी नाश पामे छे। तेवा श्री ऋषभदेव प्रभुनां चरण-कमलने प्रयत्न पूर्वक हुं सर्व प्रथम नमस्कार करू छु...
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