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________________ साहित्य सत्कार : १८९ दिया गया है जो मांसाहारी अक्सर उठाया करते हैं। इसमें सामाजिक, नैतिक, वैद्यकीय पोषण, पर्यावरण, आर्थिक, स्वास्थ्य एवं धार्मिक आधार पर शाकाहार की उपयोगिता को समझाने का प्रयास किया गया है। आशा है पाठक गण इस पुस्तक को पढ़ कर उस पर अमल करने का प्रयास करेंगे। राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोध छात्र) संबुज्झह किं ण बुज्झह, लेखक- आचार्यश्री शिवमुनि जी म०सा०, प्रका०प्रज्ञा - ध्यान एवं स्वाध्याय प्रकाशन, पुणे (महाराष्ट्र), संस्करण जून २००२, आकार - डिमाई, पृष्ठ- २५६, मूल्य ५०/ - " संबुज्झह किं ण बुज्झह" आचार्य शिव मुनिजी म०सा० द्वारा दिल्ली में दिए गए प्रवचनों का संकलन है । जैसा कि पुस्तक का शीर्षक है " सम्बोधि को प्राप्त करो! क्यों नहीं सम्बोधि को प्राप्त करते हो ।" इस शीर्षक के अनुरूप ही सारे प्रवचन हैं। आचार्यश्री के कुल १८ प्रवचन इस पुस्तक में संकलित हैं। सभी प्रवचन शिक्षाप्रद और मनन करने योग्य हैं। मृत्यु से अमृत की ओर, सच्चं खु भगवं, श्रमण कौन, सरलतम है धर्म, ऐसे रहिए संसार में, आनन्दपूर्ण जीवन के सूत्र, अमृत का अक्षर हस्ताक्षर, जिन शासन का मूलः विनय, अमृतमय जीवन का विज्ञान, साधुधर्म का मूल : ध्यान, अहिंसा परमोधर्मः, जागरण का मूलमंत्र : जयं, समता : मोक्ष का परम उपाय, समस्त सिद्धियों का द्वार : सम्यग्दर्शन, सम्यग्दर्शन के आठ अंग, मन ही बंधन मन हीं मोक्ष, माणुसत्तं खु दुल्लह अमूर्च्छा ही अपरिग्रह और परिशिष्ट के अन्तर्गत - आचार्यप्रवर श्री शिवमुनि जी महाराज : शब्द चित्र, युवा मनीषी श्री शिरीष मुनि जी महाराज, साधक श्री शैलेष कुमार जी : एक परिचय, २१वीं सदी में धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु प्रशिक्षक वर्ग योजना आदि का संग्रह प्रस्तुत पुस्तक में है । इन प्रवचनों को पढ़कर ऐसा आभास होता है कि हमारे समक्ष स्वयं आचार्य श्री उद्बोधित कर रहे हैं। पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ और प्रत्येक शब्द में आचार्य श्री के गहन चिन्तन, विशाल दृष्टिकोण और निरन्तर प्रेरणा का समन्वय है। > राघवेन्द्र पाण्डेय (शोध छात्र) - Jain Education International पठमं नाणं, लेखक - आचार्यश्री शिव मुनि जी म०सा०, प्रका० कोमल प्रकाशन C/o विनोद शर्मा, मकान नं० २०८७ / ७, गली नं० २०, शिवमंदिर के पास, प्रेमनगर, दिल्ली ११०००८, प्राप्तिस्थान श्री सरस्वती विद्या केन्द्र, जैन चैरिटीज, जैन हिल्स, मोहाड़ी रोड, जलगांव (महाराष्ट्र), संस्करण अक्टूबर २००३, आकार - डिमाई, पृष्ठ १२८, मूल्य - ५०/ - - "पठमं नाणं" का अर्थ होता है पहले ज्ञान । ज्ञान से बढ़कर कुछ भी नहीं है। आचार्य श्री द्वारा प्रस्तुत इस पुस्तक में एठमं नाणं, कर्म सिद्धान्त : एक विवेचन, पुराना जो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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