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________________ १८८ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १- ६ / जनवरी - जून २००४ पाठ में कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए गए हैं। पुस्तक के अन्त में नाम परिचय दिया गया है । यह कथा श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में समान रूप से लोकप्रिय हैं। श्रीपालचरित इसी परम्परा की एक उत्कृष्ट रचना है। इसमें बिना किसी सर्ग विभाजन के ७५६ गाथायें हैं कृति मुख्यत: दोहा एवं चौपाई में है परन्तु यत्र तत्र, सोरठा, अडिल्ल, रोला आदि का भी प्रयोग हुआ है। कठिन शब्दों की पादटिप्पणी भी दी गयी है । विद्वजनों के लिए यह ग्रन्थ संग्रहणीय है। लोगस्स सूत्र (एक दिव्य साधना ), प्रकाशक चौरडिया चैरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर आकार - डिमाई, पृष्ठ- २०७, मूल्य राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोध छात्र) साध्वी डॉ० दिव्यप्रभा, लेखक ३०२००३ संस्करण - २००३, - - १००/ 'लोगस्स सूत्र' साध्वी डॉ० दिव्यप्रभा द्वारा समय-समय पर दिए गए ९ प्रवचनों का संकलन हैं। प्राय: प्रवचन दार्शनिक एवं कठिन शब्दों से युक्त होते है जिसे सामान्य जन के लिए आत्मसात् करना दुरूह कार्य होता है। साध्वी जी ने इन प्रवचनों में इतनी सरल भाषा का प्रयोग किया है जिसे वे सहज ही मन में बैठ जाते हैं। इन प्रवचनों में प्रेरणादायी प्रसंग और उनका सरल एवं सुबोध भाषा में विश्लेषण हमें जीवन दर्शन की मौलिकता का दर्शन कराता है। गुरु के आत्मज्ञान की ज्योति जब हृदय को स्पर्श करती है तभी चेतना में अभीप्सा एवं जागरण प्रज्वलित होता है। साध्वी जी के ये प्रवचन लोगों को सहज ही प्रभावित करेंगे और वे इसे आत्मसात कर लाभान्वित होंगे। पुस्तक के अन्त में दिए गए मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र आदि के चित्र इस ग्रन्थ को गरिमा प्रदान करते हैं। ये सारे चित्र रंगीन हैं। यह पुस्तक सुधी पाठकों के संग्रह करने योग्य है । राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोध छात्र) मांसाहार - खतरा ए जान, लेखक - क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी, प्रकाशकअनेकान्त स्वाध्याय मंदिर, वर्धा - ४४२००१, आकार डिमाई, पृष्ठ - ८२, मूल्य २५/ - क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज की पुस्तक मांसाहार- खतरा ए जान मांसाहार प्रेमियों के लिए उचित मार्गदर्शन है। जिस तरह से आज तथाकथित आधुनिक जन अपने पूर्वजों की सात्विक वृत्ति से दूर होकर आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता के नाम पर मांसाहार अपनाने में तनिक भी संकोच नहीं कर रहे हैं, निश्चय ही यह पुस्तक उनके लिए मार्गदर्शक और सात्विक आहार की ओर प्रवृत्त करने में पूर्णतः सक्षम सिद्ध होगी। मात्र ८२ पृष्ठीय इस छोटी सी पुस्तक में उन सभी प्रश्नों का उचित उत्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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