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खरतरगच्छ क्षेमकीर्तिशाखा का इतिहास : १२३
जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है क्षेमकीर्ति के दूसरे शिष्य और क्षेमहंस के गुरुभ्राता तपोरत्न की भी शिष्य - परम्परा आगे चली। तपोरत्न के दो शिष्य हुए, प्रथम तेजोराज और द्वितीय भुवनसोम । तेजोराज की परम्परा में आगे चलकर लक्ष्मीवल्लभ नामक विद्वान् हुए जिन्होंने वि०सं० १७२५ में रत्नहासचौपाई की रचना की। उक्त कृति की प्रशस्ति में इन्होंने मात्र अपने गुरु लक्ष्मीकीर्ति का ही उल्लेख किया है ? ९ किन्तु देसाई ने विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इनकी गुर्वावली दी है, २० जो इस प्रकार है :
१९
तपोरत्न
तेजोराज
T हर्षकुजर
लब्धिमंडन 1.
लक्ष्मीकीर्ति
I
लक्ष्मीवल्लभ (वि० सं० १७२५ में रत्नहासचौपाई के रचयिता)
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तपोरत्न के दूसरे शिष्य भुवनसोम की परम्परा में जिनहर्ष नामक एक प्रसिद्ध विद्वान् हो चुके हैं जिनके द्वारा रचित अनेक कृतियां प्राप्त होती हैं। श्री अगरचन्द नाहटा ने स्वसम्पादित जिनहर्षग्रन्थावली २१ में इनकी कृतियों पर विस्तृत विवेचन किया है। इसकी प्रस्तावना में उन्होंने विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इनके गुरुपरम्परा की लम्बी तालिका दी है, २२ जो इस प्रकार है :
तपोरत्न
भुवन सोम
साधुरंग
धर्मसुन्दर
दानविजय
1 गुणवर्धन
वाचक श्रीसोम
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वाचक शांतिहर्ष
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धर्ममेरु
लब्धिरत्न (वि०सं० १६७६ में नारदचौपाई के कर्ता)
जिनहर्ष शांतिलाभ सौभाग्यवर्धन लालवर्धन सौख्यधीर सोमराज - विद्याराज सत्यकीर्ति संजयकीर्ति
( अनेक ग्रन्थों के रचनाकार)
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