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________________ जैन गुफाएँ : ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व : ९७ नामक ग्राम से पाँच मील उत्तर की ओर पहाड़ी पर स्थित है जो श्री भगवती मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मन्दिर पहाड़ी पर स्थित एक विशाल शिला को काटकर बनाया गया है और सामने तीन ओर पाषाण-निर्मित भित्तियों से उसका विस्तार किया गया है। शिला के गुफा भाग के दोनों प्रकोष्ठों में विशाल पद्मासन जिन मूर्तियाँ सिंहासन पर प्रतिष्ठित हैं। शिला का आन्तरिक और बाहरी भाग जैन तीर्थङ्करों की ३० प्रतिमाओं से अलंकृत है। कुछ के नीचे केरल की प्राचीन लिपि वत्तजेत्थु में लेख भी हैं जिनसे उस स्थान का जैनों से सम्बन्ध तथा उसका निर्माण काल ९वीं शती सिद्ध होता है। . अंकाई-तंकाई नामक गुफा समूह येवला तालुके में मनमाड से ९ मील दूर अंकाई के समीप स्थित है। लगभग तीन हजार फीट ऊँची पहाड़ियों में सात छोटीछोटी गुफाएँ हैं, जो कलात्मक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। प्रथम गुफा में बरामदा, मण्डप और गर्भगृह हैं। मण्डप का द्वार प्रचुर कलाकृतियों से पूर्ण है, अंकनं बड़ी सूक्ष्मता से किया गया है। गर्भगृह का द्वार भी शिल्पकलापूर्ण है। दूसरी गुफा के नीचे बरामदे के दोनों पार्थों में पाषाण की मूर्तियाँ हैं जिनमें इन्द्र-इन्द्राणी भी हैं और दूसरे तल पर दोनों पार्थों में विशाल सिहों की आकृतियाँ मिलती हैं। तीसरी गुफा के मण्डप की छत पर कमल की आकृतियाँ हैं, जिनकी पंखुड़ियों पर देवियाँ वाद्य सहित नृत्य कर रही हैं। देव-देवियों के अनेकयुगल नाना वाहनों पर आरूढ़ हैं। स्पष्टत: यह दृश्य तीर्थङ्कर के जन्म कल्याणक उत्सव का है। गर्भगृह में मनुष्याकृति शान्तिनाथ व उनके दोनों ओर पार्श्वनाथ की मर्तियाँ हैं। शान्तिनाथ के सिंहासन पर उनका मृग लांछन, धर्मचक्र, भक्त और सिंह की आकृतियाँ बनी हैं। ऊपर विद्याधर व गजलक्ष्मी की आकृतियाँ हैं, ऊपर से गन्धर्वो के जोड़े पुष्पवृष्टि कर रहे हैं। शैली आदि अन्य बातों से इन गुफाओं का निर्माण काल ११वीं शती प्रतीत होता है। शेष गुफाएँ ध्वस्त अवस्था में हैं। यद्यपि गुफा-निर्माण कला का युग बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था, लेकिन जैनी १५वीं शती तक गुफाओं का निर्माण कराते रहे। इसका उदाहरण तोमर राजवंशकालीन ग्वालियर की जैन गुफाएँ हैं। जिस पहाड़ी पर ग्वालियर का दुर्ग बना हुआ है, वह दो मील लम्बी, आधा मील चौड़ी तथा ३०० फीट ऊँची है। दुर्ग के भीतर १०९३ ई० का बना सास-बहू का मन्दिर है जो जैन मन्दिर रहा है। लेकिन इस पहाड़ी पर जैन गुफाओं का निर्माण १५वीं शती में हुआ। सम्भवत: यहाँ गुफा-निर्माण की प्राचीन परम्परा रही होगी और वर्तमान में पायी जाने वाली कुछ गुफाएँ १५वीं शती से पूर्व की भी हो सकती हैं। लेकिन १५वीं शती में तो जैनियों ने समस्त पहाड़ी को ही गुफामय कर दिया। पहाड़ी के ऊपर, नीचे व चारों तरफ जैन गुफाएँ विद्यमान हैं। इन गुफाओं में योजना-चातुर्य व शिल्प-सौष्ठव नहीं है, परन्तु इनकी संख्या, विस्तार एवं मूर्तियों की विशालता, इन गुफाओं की विशेषता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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